मनेंद्रगढ़ , नवंबर 07 -- छत्तीसगढ़ में प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है लेकिन उनका वैज्ञानिक और व्यावसायिक उपयोग अब धीरे-धीरे ग्रामीण जीवन को समृद्ध बना रहा है।
ऐसा ही एक उदाहरण है लाख पालन, जिसने मनेंद्रगढ़ जिले के ग्रामीणों के जीवन में नई रोशनी लाई है। वनमंडल मनेंद्रगढ़ की पहल से पलाश (स्थानीय भाषा में परसा) पेड़ आज किसानों के लिए आजीविका का मजबूत आधार बन चुके हैं। ये पेड़ लाख पालन के लिए अत्यंत उपयुक्त होते हैं, जिन पर रंगीनी लाख का उत्पादन किया जाता है। पहले जहां इन पेड़ों का कोई व्यावसायिक उपयोग नहीं होता था, वहीं अब इन्हीं के सहारे सैकड़ों किसान आत्मनिर्भर बन रहे हैं।
वनमंडल की पहल से अक्टूबर-नवंबर 2023-24 में पहली बार भौता, नारायणपुर, छिपछिपी, बुंदेली, चांटी और जरडोल गांवों में 34 किसानों को 2.54 क्विंटल बीहन लाख (बीज) वितरित किए गए, जिनका 276 पेड़ों में संचरण कराया गया। इसके बाद जून-जुलाई 2024-25 में चार किसानों ने 0.74 क्विंटल बीहन 80 पेड़ों में लगाया। इस पहल का विस्तार अक्टूबर 2024-25 में और अधिक गांवों तक हुआ, जब नौ ग्रामों के 126 किसानों ने 3117 पलाश पेड़ों में बीहन लाख का संचरण किया। जुलाई 2025 में यह संख्या बढ़कर 27 ग्रामों के 205 किसानों तक पहुंच गई, जिन्होंने 2037 पेड़ों में 25.50 क्विंटल बीहन लाख लगाया।
अक्टूबर 2025 तक यह पहल एक बड़े आंदोलन का रूप ले चुकी थी। अब 37 गांवों के 400 किसानों ने छह हजार पलाश पेड़ों में 60 क्विंटल बीहन लाख का संचरण किया। गौर करने योग्य बात यह रही कि इस बार संपूर्ण बीहन लाख का उत्पादन मनेंद्रगढ़ जिले के किसानों ने ही किया।
कृषकों की मेहनत और वैज्ञानिक पद्धति से लाख उत्पादन में तेजी से वृद्धि हो रही है। यदि उत्पादन इसी गति से बढ़ता रहा, तो आने वाले वर्षों में मनेंद्रगढ़ न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश के लिए लाख उत्पादन का हब बन सकता है। वर्तमान में झारखंड इस क्षेत्र में पहले और छत्तीसगढ़ दूसरे स्थान पर है, वहीं राज्य में मनेंद्रगढ़ जिला शीर्ष पर पहुंच गया है।
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