- शोभित जायसवाल सेनयी दिल्ली , अक्टूबर 21 -- भारत में मखाने का उत्पादन 2020 से 2025 के बीच दोगुनी होकर लगभग 63,000 टन तक पहुंच गयी है। मखाने की खेती का रकबा 40 से 50 प्रतिशत तक बढ़ा और पैदावारमखाना कारोबार को बढ़ाने के सरकार के प्रयास के बीच इसके निर्यात में भी जोरदार उछाल दर्ज किया गया है। भारत विश्व का सबसे बड़ा मखाना उत्पादक देश है।

एपीडा के अनुसार देश से मखाने का निर्यात तेज़ी से बढ़ने के मद्देनजर 2020 में मखाना निर्यात 6,700 टन हुआ था जबकि 2024 में यह बढ़कर 25,130 टन तक पहुंच गया है। दुनिया के देशों में इसके प्रमुख खरीदार अमेरिका, कनाडा, यूएई, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया हैं। हाल में अमेरिका के लगाए गए अधिक आयात शुल्कों के बावजूद यूरोप, दक्षिण एशिया और अफ्रीका में इसके नए बाजार और नए अवसर बन रहे हैं।

विदेशों के अलावा मखाने का घरेलू बाजार भी खासा मजबूत है। वित्त वर्ष 2021-22 से 2024-25 तक मखाना उद्योग 17 से 18 प्रतिशत सालाना दर से बढ़ा और इसका कारोबार 8,000-8,500 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। बढ़ती सेहत-जागरूकता और प्रीमियम स्नैकिंग की मांग से मखाना एक महंगे 'सुपरफूड' के रूप में उभर रहा है।

भारत की मखाना खेती का केंद्र बिहार है। इसकी हिस्सेदारी देश के कुल उत्पादन में लगभग 90 प्रतिशत और विश्व आपूर्ति में 80-85 प्रतिशत तक है। साल 2020 से 2025 के बीच मखाना की खेती का रकबा 25,000 हेक्टेयर से बढ़कर 40,000 हेक्टेयर पर पहुंच गया और उत्पादन का कांटा 63,000 टन पर आ गया। पारंपरिक तालाब-आधारित खेती के साथ-साथ खेत-आधारित और मछली-संयुक्त प्रणालियाँ किसानों को अधिक उत्पादन और मुनाफ़ा दे रही हैं। मखाना अब केवल बिहार की पारंपरिक फसल नहीं, बल्कि भारत की वैश्विक 'ब्रांड पहचान' बन चुका है।

आधुनिक किस्में जैसे 'स्वर्ण वैदेही' और 'सबौर मखाना-1' ने इसकी उत्पादकता में सुधार किया है, जबकि 'मिथिला मखाना' के जीआई टैग ने इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान दी है।

मखाना साल भर चलने वाली जल-निर्भर फसल है। पौधों की रोपाई मार्च में की जाती है और अगस्त से अक्टूबर के बीच फसल की कटाई की जाती है। जून-जुलाई में फल पानी के भीतर पकते हैं। अगस्त में बीजों को तालाब के तल से निकाला जाता है। यह बहुत कठिन काम है, जिसे पूरी तरह हाथों से किया जाता है। यही कारण है कि खेती का यह तरीका बहुत मेहनत की मांग करता है इसलिए इसमें मशीनों के इस्तेमाल एवं तकनीकी सुधार की बड़ी संभावनाएं हैं।

बिहार सरकार ने वर्ष 2025-26 के बजट में "मखाना बोर्ड" की स्थापना की घोषणा की है, जिसका बजट एक अरब रुपये रखा गया है। यह बोर्ड किसानों को बेहतर बीज, आधुनिक तकनीक, प्रशिक्षण, बाज़ार सहायता और स्थानीय प्रसंस्करण इकाइयां उपलब्ध कराने पर काम करेगा। इससे किसानों की आय में वृद्धि होगी और बिचौलियों पर निर्भरता घटेगी। साथ ही, यह बोर्ड मखाना को देश-विदेश में एक प्रीमियम ब्रांड के रूप में प्रचारित करने पर भी ध्यान केंद्रित रहेगा।

निर्यात बाज़ार के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका, कनाडा और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) को कुल निर्यात का 77 प्रतिशत हिस्सा निर्यात होता हैं लेकिन अपेक्षाकृत कम कीमत 13-19 डॉलर प्रति किलोग्राम देते हैं। वहीं, जर्मनी, नेपाल और ऑस्ट्रेलिया जैसे छोटे बाज़ार अधिक दाम 21-26 डॉलर प्रति किलोग्राम पर मखाना खरीदते हैं। यह संकेत देता है कि भारत को अपने निर्यात बाज़ार को विविध बनाते हुए उच्च-मूल्य वाले क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहिए। हाल के महीनों में निर्यात मूल्य अगस्त में 15.5 डॉलर प्रति किलोग्राम तक गिरा था, पर सितंबर में त्योहारों और नए बाज़ारों के कारण सुधार देखने को मिला।

घरेलू बाज़ार में भी मखाना उद्योग मज़बूती से बढ़ रहा है। वर्ष 2021-22 से 2024-25 के बीच इसमें 17-18 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर्ज हुई है और 2029-30 तक इसका कारोबार 11,000-12,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। घरेलू कीमतें 2020 के 500 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 2025 में 1,250 रूपये प्रति किलो तक पहुंच गईं हैं। उच्च ग्रेड मखाना 1,200-1,300 रुपये प्रति किलो के प्रीमियम पर बिक रहा है।

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