भुवनेश्वर , दिसंबर 31 -- ओडिशा के भुवनेश्वर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने हाल ही में एक 37 वर्षीय व्यक्ति का अपना पहला यकृत प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक किया।

अस्पताल अधिकारियों ने बुधवार को कहा कि यह उपलब्धि ओडिशा और पड़ोसी राज्यों के लोगों को उन्नत और जीवन रक्षक चिकित्सा सेवाएं देने की उनकी प्रतिबद्धता को दोहराती है।

इस प्रत्यारोपण के लिए एम्स (भुवनेश्वर) ने नयी दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज (आईएलबीएस) के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया था।

एम्स (भुवनेश्वर) में यकृत प्रत्यारोपण की कल्पना 2023 में की गयी थी और उसी वर्ष इसे शुरू करने का आधिकारिक लाइसेंस मिल गया था। इसके बाद, 21 फरवरी 2025 को यकृत प्रत्यारोपण ओपीडी शुरू हुई। प्रत्यारोपण सेवाओं को और मजबूत करने के लिए नवंबर 2025 से 10 बिस्तरों वाला प्रत्यारोपण आईसीयू पूरी तरह से काम कर रहा है।

अधिकारियों ने बताया कि जिस मरीज का यकृत प्रत्यारोपण किया गया था, वह ठीक हो रहा है और अंग दान करने वाले उसके भाई के स्वास्थ्य में भी सुधार हो रहा है। दोनों को इसी सप्ताह अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी थी। मरीज पुरी जिले के पिपली का रहने वाला है।

कार्यकारी निदेशक डॉ आशुतोष बिस्वास ने बताया कि 50 से अधिक सदस्यों वाली सर्जरी टीम को इस प्रक्रिया को पूरा करने में 14 घंटे लगे। दाता मरीज का 30 वर्षीय भाई है, जिसने बिना किसी वित्तीय या भौतिक लालच के केवल कर्तव्य और स्नेह की भावना से अपने लिवर का एक हिस्सा दान किया है। यह प्रत्यारोपण सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग द्वारा किया गया, जिसका नेतृत्व डॉ. ब्रह्मदत्त पट्टनायक ने डॉ. तन्मय दत्ता और डॉ. सुनीता गुप्ता के साथ किया। इन्हें आईएलबीएस के यकृत प्रत्यारोपण सर्जरी के प्रमुख प्रो. डॉ. विनेंद्र पामेचा और उनकी विशेषज्ञ टीम से मार्गदर्शन प्राप्त हुआ था।

एम्स (भुवनेश्वर) में न केवल ओडिशा बल्कि पड़ोसी राज्यों से भी लोग यकृत संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए आ रहे हैं और इस साल अब तक 200 से अधिक मरीज ओपीडी सेवाओं का लाभ उठा चुके हैं।

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