लखनऊ , नवम्बर 12 -- विश्व निमोनिया दिवस पर किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो वेद प्रकाश ने कहा कि केवल भारत में ही हर साल 5 वर्ष से कम उम्र के करीब 6 लाख बच्चों की मृत्यु निमोनिया के कारण होती है, यानी प्रतिदिन लगभग 2000 बच्चों की जान जाती है। भारत में बाल निमोनिया के सालाना 92,000 से अधिक मामले दर्ज होते हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश का योगदान सर्वाधिक है।

बुधवार को विभाग में एक विशेष प्रेस कांफ्रेंस के दौरान डॉ वेद प्रकाश ने इस वर्ष की थीम "चाइल्ड सर्वाइवल " पर चर्चा करते हुए कहा कि निमोनिया आज भी पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों और बुजुर्गों के लिए सबसे गंभीर स्वास्थ्य खतरा बना हुआ है। उन्होंने कहा कि समय पर निदान, टीकाकरण, स्वच्छ हवा और सही पोषण इस बीमारी के विरुद्ध हमारे सबसे मजबूत हथियार हैं।

प्रो. वेद प्रकाश ने कहा कि "निमोनिया मानव जीवन के लिए गंभीर चुनौती है। यह न केवल एक चिकित्सकीय, बल्कि सामाजिक और आर्थिक समस्या भी है। टीकाकरण, शुरुआती पहचान और त्वरित उपचार से बच्चों की जान बचाई जा सकती है।" उन्होंने बताया कि भारत सरकार ने वर्ष 2017 से न्यूमोकोकल वैक्सीन (पीएसवी) को यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम में शामिल किया है। वहीं, डब्ल्यूएचओ का लक्ष्य वर्ष 2030 तक निमोनिया से रोकी जा सकने वाली मृत्यु को समाप्त करना है।

उन्होने कहा कि "विश्व निमोनिया दिवस केवल एक स्मरण दिवस नहीं, बल्कि एक आह्वान है- कि कोई भी बच्चा सांस की लड़ाई में पीछे न रह जाए। टीकाकरण, स्वच्छ हवा, समय पर उपचार और सामुदायिक जागरूकता से हम लाखों जीवन बचा सकते हैं।"कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने कहा कि वायु प्रदूषण, कुपोषण, धूम्रपान और घरेलू धुएं का संपर्क निमोनिया के प्रमुख जोखिम कारक हैं। अनुमान है कि देश में हर साल ठोस ईंधन से खाना पकाने के कारण 43 लाख बच्चे हानिकारक वायु प्रदूषण के संपर्क में आते हैं, जो लगभग 40 प्रतिशत बाल निमोनिया मामलों के लिए जिम्मेदार है।

इस मौके पर पूर्व निदेशक वीपीसीआई नई दिल्ली प्रो. (डॉ.) राजेन्द्र प्रसाद, प्रो. (डॉ.) आर.ए.एस. कुशवाह, प्रो. (डॉ.) राजेश यादव, प्रो. (डॉ.) प्रशांत गुप्ता सहित अन्य विशेषज्ञों ने भी अपने विचार रखे।

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