बेंगलुरु , नवंबर 03 -- योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने सोमवार को कहा कि भारत को बढ़ती असमानता से निपटने के लिए अपने कराधान ढाँचे पर तत्काल पुनर्विचार करना चाहिए।

श्री अहलूवालिया ने टाटा ट्रस्ट्स और नोबेल प्राइज़ आउटरीच द्वारा आयोजित 'नोबेल प्राइज़ डायलॉग इंडिया 2025' में बोलते हुए तर्क दिया कि भारत के नीति निर्माता कराधान को सामाजिक न्याय के साधन के रूप में उपयोग करने में लगातार विफल रहे हैं।उन्होंने आह्वान किया कि एक अधिक न्यायसंगत और जवाबदेह शासन प्रणाली बनाने के लिए प्रगतिशील कर सुधार करने होंगे और संस्थाओं का विकेंद्रीकरण करना होगा।

श्री आहलूवालिया ने कहा, "अगर हम असमानता से निपटने के लिए गंभीर हैं, तो हमें कराधान के बारे में कड़े सवाल पूछने होंगे। भारत की कर प्रणाली छूटों से भरी पड़ी है। हर वित्त मंत्री छूट की सीमा बढ़ाता है, लेकिन प्रगतिशील कराधान के बारे में बहुत कम लोग बात करते हैं।"पूर्व उपाध्यक्ष ने छात्रों और नागरिकों से आग्रह किया कि वे कर समानता और पुनर्वितरण नीतियों पर सांसदों से सवाल करें। उन्होंने कहा, "जवाबों से पता चलेगा कि क्या हम असमानता कम करने के लिए वाकई गंभीर हैं या सिर्फ़ दिखावा कर रहे हैं।" उन्होंने भारत की अति-केंद्रीकृत नौकरशाही की तीखी आलोचना करते हुए इसे 'एक भारतीय अभिशाप' बताया जो स्थानीय नवाचार और जवाबदेही को कमज़ोर करता है।

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