नयी दिल्ली , दिसंबर 25 -- बंगलादेश में जारी उथल पुथल और अशांत माहौल की वजह से भारत में पढ़ रहे बंगलादेशी छात्र चिंतित हैं और वे खुद को लाचार महसूस कर रहे हैं।

कई छात्रों ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल कम कर दिया है। वहां के हालात और करियर समेत अपने भविष्य की योजनाओं पर वे दोबारा सोचने के लिये मजबूर है। उन्हें डर है कि राजनीतिक ताकतें बांग्लादेश में उनके परिवारों को निशाना बना सकती हैं।

यूनीवार्ता ने उनकी मानसिक स्थिति समझने के लिए भारत के विभिन्न विश्वविद्यालय परिसरों में कई बंगलादेशी छात्रों से संपर्क किया। छात्र इतना डरे हुए हैं कि उनमें से कुछ ने ही रिकॉर्ड पर बात करने पर सहमति जतायी, अन्य ने अपने परिवारों की सुरक्षा के लिए नाम बदले जाने की मांग की।

मैमनसिंह से ताल्लुक रखने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र अजीत देवनाथ ने कहा, "बंगलादेश की वर्तमान स्थिति चिंताजनक है। हर दिन जब मैं मीडिया देखता हूं, तो कई नकारात्मक खबरें देखता हूं। मेरे माता-पिता घर पर अकेले रहते हैं। मैं उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहता हूं।"देवनाथ ने कहा, "अपने माता-पिता की सुरक्षा के लिए मैंने सोशल मीडिया का इस्तेमाल कम कर दिया है। किसी भी पक्ष को चुनना मेरे और मेरे परिवार के लिए खतरनाक हो सकता है। मैं उससे बचना चाहता हूं।"जादवपुर विश्वविद्यालय के 23 वर्षीय छात्र अल्ताफ हुसैन (बदला नाम) ने कहा कि वे आवामी लीग समर्थक परिवार से आते हैं और अपने परिवार और रिश्तेदारों को लेकर लगातार हमले का सामना कर रहे हैं। वे कहते हैं, "मेरा परिवार मुझे अपनी रोजमर्रा की मुश्किलों को कम करके बताता है। वे मुझसे कहते रहते हैं, 'चिंता मत करो, अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो', लेकिन मैं जानता हूं कि उन्हें क्या-क्या परेशानियां सताती हैं। इसमें उनका लगातार पता बदलना और बिना गलती के भी गिरफ्तारी का डर शामिल है।"हुसैन ने बताया, "मुझे नहीं पता कि मैं घर वापस जा पाऊंगा या नहीं... पोस्ट-ग्रेजुएशन के बाद मुझे प्लान बी पर सोचना पड़ेगा... बंगलादेश और मेरे दोनों के भविष्य अनिश्चित हैं।"बंगलादेश में भारतीय मिशनों पर हुए हाल के हमलों के कारण भारत के विभिन्न शहरों में भी प्रदर्शन हुए हैं। छात्रों ने हालांकि यह भी उम्मीद जतायी है कि चुनाव शायद बांग्लादेश में शांति और उम्मीद लेकर आये।

हुसैन ने कहा, "नेता 'शांति' वापस लाने का वादा कर रहे हैं, हमें आशा है कि वाकई ऐसा होगा।"पहचान के डर से पूरा नाम नहीं बताने वाली दिल्ली विश्वविद्यालय की अंतिम वर्ष की छात्रा अलीशा ने कहा, "जिस रात दो बड़े बंगलादेशी समाचार चैनल जला दिये गये और छायानौत पर हमला हुआ उसके दूसरे ही दिन मेरी परीक्षा थी। मैं पढ़ाई करने के बजाय पूरी रात खबरें देखती रही... उस रात कई लोग जिनको मैं जानती हूं, भीड़ से खतरा महसूस कर रहे थे और अपमान का सामना कर रहे थे।"एक अन्य छात्र ने कहा कि भले ही बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव नयी बात नहीं है, मगर ताजा हालात 'सुरक्षित जीवन' के लिए उन्हें दूसरे देश जाने पर विचार करने को मजबूर कर रहे हैं।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र देवाशीष मजूमदार (बदला नाम) ने कहा, "बंगलादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा और भेदभाव नया नहीं है, लेकिन ताजा हालात अल्पसंख्यकों के भविष्य को अनिश्चित और असुरक्षित बना रहे हैं। मैं अब दूसरे देश जाने पर विचार कर रहा हूं। मुझे अब विश्वास नहीं रह गया कि बंगलादेशी मुझे सुरक्षित या स्थिर जीवन दे सकता है।"छात्र ने बताया कि कैसे उसके रिश्तेदारों को अपनी सुरक्षा के लिए पैसे देने को मजबूर किया गया। अगर वे ऐसा नहीं करते तो संपत्ति पर हमला किया जाता या उसे जला दिया जाता और परिवार के सदस्यों को बेइज्जत किया जाता।

छात्र ने कहा कि भीड़ के हमले आम हो गये हैं, लेकिन आवामी लीग के कथित समर्थकों और अल्पसंख्यकों पर हाल के दिनों में हमले तेज हो गये हैं। पिछले दिनों मैमनसिंह में कारखाना कर्मचारी 25 वर्षीय दीपू दास की हत्या और उसे आग के हवाले कर दिये जाने की घटना उन्हीं में से एक है।

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