नयी दिल्ली , अक्टूबर 14 -- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा है कि भारत जलवायु प्रतिबद्धता में प्रगति के लिये पेरिस समझौते को आगे बढ़ाने के वास्ते संवाद आधारित दृष्टिकोण को निष्ठपूर्वक क्रियान्वित करने की दिशा में काम कर रहा है।

श्री यादव ने ब्राजील की राजधानी ब्रासीलिया में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन से पहले 13 और 14 अक्टूबर को आयोजित दो दिवसीय 'प्री-सीओपी'30 सम्मेलन में ग्लोबल स्टॉक टेक-जीएसटी ब्रेकआउट सत्र में अपने संबोधन में प्रथम जीएसटी के सफल समापन को स्वीकार करते हुए कहा कि इस बैठक में जो तथ्य सामने आये हैं उनसे पुष्टि होती है कि पेरिस समझौते का निष्ठापूर्वक कार्यान्वयन किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि जीएसटी पेरिस समझौते के लक्ष्यों की दिशा में दुनिया की सामूहिक प्रगति के मूल्यांकन की एक पंचवर्षीय प्रक्रिया है। जीएसटी को तीन आवश्यक भूमिकाओं- पक्षों को सामूहिक प्रगति का मूल्यांकन करने, शेष कमियों की पहचान करने और घरेलू तथा वैश्विक स्तर पर उन्नत कार्रवाइयों का मार्गदर्शन करने में सक्षम बनाने की प्रतिबद्धता को निभाते हुए सशक्त बनाने के लिए तैयार किया गया है।

श्री यादव ने सोमवार को प्री-सीओपी30 बैठक में इसी विषय पर आयोजित सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि बैठक का उद्देश्य राजनीतिक रूप से संवेदनशील विषयों पर मतभेदों को कम कर कार्यक्रम से पहले मंत्रिस्तरीय आम सहमति बनाने का प्रयास के लिए पर्यावरण एवं जलवायु मंत्रियों, वरिष्ठ वार्ताकारों और पर्यवेक्षकों को एक साथ लाना है।

उन्होंने कहा कि जीएसटी समझौते की प्रेरक शक्ति के रूप में काम कर राजनीतिक गति को बढ़ावा देता है और उच्च महत्वाकांक्षाओं की दिशा में गतिशील प्रयासों को बनाए रखता है। संवाद में इन पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने से जीएसटी के परिणामों से प्रेरित अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और घरेलू जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा देने में सहायता मिलेगी।

श्री यादव ने भविष्य के जीएसटी के लिए बैठक में एक प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि वैज्ञानिक आकलनों को उनकी वैश्विक प्रासंगिकता पर उचित चर्चा किए बिना शामिल करने में किसी तरह की शीघ्रता नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि विज्ञान को सभी प्रासंगिक स्रोतों से उचित विचार-विमर्श के साथ कठोरता, सटीकता और सुदृढ़ता का पालन करना चाहिए।

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री ने कहा कि दुनिया को अब महत्वाकांक्षी जलवायु उपायों को लागू करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा और सबसे अधिक- विकासशील देशों के पास अनुकूलन और शमन के लिए संसाधनों की तत्काल कमी जैसी सबसे बड़ी चुनौती का समाधान का रास्ता निकालना होगा क्योंकि अब बिना कार्रवाई के निरंतर समीक्षा करने का समय नहीं है। उन्होंने कहा कि संवाद आवश्यक है, लेकिन इसके साथ ही उसी गति से कार्रवाई भी ज़रूरी है।

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