नयी दिल्ली , दिसंबर 24 -- पाकिस्तान के कई धर्मगुरुओं और अलग-अलग पंथों के प्रतिनिधियों ने मंगलवार को कहा कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल पाकिस्तान पर हमला करने के लिये नहीं करना चाहिये और न ही पाकिस्तान को अफगानिस्तान में हमले करने चाहिये।
धर्मगुरुओं ने मंगलवार को एक संयुक्त बयान में कहा कि अफगानिस्तान को टीटीपी जैसे समूहों का सुरक्षित स्थान बनाना न सिर्फ दोनों देशों के की स्थिरता के लिये खतरा है, बल्कि दोनों देशों के रिश्तों को भी प्रभावित करता है। मौलाना फज़लुर रहमान ने अफगानिस्तान में पाकिस्तान सेना के हमलों की निंदा करते हुए कहा कि 'भारत भी आतंकवादी ठिकानों को तबाह करने के दावे' के साथ ही पाकिस्तान में हमला करता है।
श्री फ़ज़लुर रहमान ने कहा, "अगर आप अफगानिस्तान में अपने हमलों को यह कहकर सही ठहराते हैं कि आप अपने दुश्मनों को निशाना बना रहे हैं, तो आप तब क्यों आपत्ति जताते हैं जब भारत बहावलपुर और मुरीदके में अपने दुश्मनों को निशाना बनाता है?"जमियत उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआई-एफ) के अध्यक्ष फज़लुर रहमान ने विशेष रूप से सेना प्रमुख आसिम मुनीर की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि अफगान सीमा पर पाकिस्तान की रणनीति के पीछे का कारण क्या है।
उल्लेखनीय है कि रहमान की जेयूआई-एफ के पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में 10 सदस्य हैं, जो विपक्षी पार्टियों में सबसे बड़ी है। इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के समर्थन वाले 75 निर्दलीय सांसद असेंबली का सबसे बड़ा विपक्षी गुट हैं।
श्री फ़ज़लुर रहमान ने पाकिस्तानी सैन्य नेतृत्व को निशाना बनाकर नीति में निरंतरता के मुद्दे पर सवाल उठाये। उन्होंने कहा, "अगर आप यह दावा करके काबुल पर हमलों को सही ठहराते हैं कि आपके दुश्मन वहां मौजूद हैं, तो जब भारत पाकिस्तान के अंदर अपने दुश्मनों को निशाना बनाता है तो आपका जवाब अलग क्यों होता है?"उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तानी और अफगान सेनाओं के बीच दुश्मनी का दौर जारी है। हाल के महीनों में सीमा पार झड़पों और हवाई हमलों ने इस क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ा दी है। दोनों पक्षों ने संघर्ष विराम उल्लंघन और हिंसा बढ़ाने की ज़िम्मेदारी को लेकर एक-दूसरे पर आरोप लगाये हैं। पाकिस्तान में अपनी सुरक्षा नीति और सीमाओं के पार बल के इस्तेमाल को लेकर अंदरूनी बहस भी चल रही है। पाक-अफग़ान तनाव ने न सिर्फ काबुल-इस्लामाबाद संबंधों को खराब किया है, बल्कि आगे और अस्थिरता के जोखिम को लेकर क्षेत्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय चिंता भी बढ़ा दी है।
हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित