नयी दिल्ली , अक्टूबर 21 -- वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर) और राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं नीति अनुसंधान संस्थान (एनआईएससीपीआर) ने राष्ट्रीय पहल स्वस्तिक (वैज्ञानिक रूप से मान्य सामाजिक पारंपरिक ज्ञान) के अंतर्गत शिक्षकों के लिए क्षमता निर्माण राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया।
"भारतीय ज्ञान प्रणालियों के संचार और प्रसार" विषय पर आयोजित कार्यशाला का उद्देश्य वैज्ञानिक रूप से मान्य पारंपरिक ज्ञान को समाज तक पहुंचाना है।
कार्यशाला का आयोजन रुसेटअप (ग्रामीण विज्ञान शिक्षा प्रशिक्षण उपयोगिता कार्यक्रम) के अंतर्गत भारतीय राष्ट्रीय युवा विज्ञान अकादमी (आईएनवाईएएस) के साथ मिलकर किया गया। कार्यशाला में 75 विभिन्न संस्थानों के 100 से अधिक प्रतिभागियों ने पंजीकरण कराया और सक्रिय रूप से भाग लिया।
कार्यक्रम में सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर की निदेशक डॉ. गीता वाणी रायसम ने स्वस्तिक का परिचय दिया और (भारतीय ज्ञान प्रणाली) आईकेएस को क्षेत्रीय संस्थानों और शिक्षकों तक पहुंचाने में सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर, आईएनवाईएएस और एमडीयू के सहयोगात्मक प्रयासों की सराहना की।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और "भारत के पर्वत पुरुष" के रूप में प्रसिद्ध हिमालयन पर्यावरण अध्ययन एवं संरक्षण संगठन (हेस्को), देहरादून के संस्थापक पद्म भूषण डॉ. अनिल पी. जोशी ने अर्थव्यवस्था, पारिस्थितिकी और पर्यावरण के बीच जटिल संबंधों पर चर्चा करते हुए कहा कि पारंपरिक भारतीय ज्ञान हमेशा स्थिरता और आत्मनिर्भरता पर आधारित रहा है। उन्होंने शिक्षकों को भारत के स्वदेशी पारंपरिक ज्ञान के संदर्भ में वैज्ञानिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित किया।
एमडीयू के कुलपति प्रो. राजबीर सिंह ने आईकेएस पर अंतःविषय पहल को बढ़ावा देने में सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर, आईएनवाईएएस और एमडीयू के संयुक्त प्रयासों की सराहना की।
इस कार्यक्रम में "भारत की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विरासत: संरक्षण से स्थायित्व तक" विषय पर आयोजित कार्यशाला के पहले तकनीकी सत्र में भारत की समृद्ध एवं विविध वैज्ञानिक विरासत और वर्तमान युग में इसकी निरंतरता पर ध्यान केंद्रित किया गया।
सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर की पूर्व निदेशक प्रो. रंजना अग्रवाल ने इस बात पर ज़ोर दिया कि प्राकृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक विज्ञानों को एकीकृत करने वाला एक समग्र दृष्टिकोण भारत की वैज्ञानिक विरासत का आधार है। उन्होंने स्पष्ट संचार, वैज्ञानिक सत्यापन और शैक्षिक समावेशन के महत्व का उल्लेख करते हुये कहा कि डिजिटल युग में अक्सर गलत जानकारी पारंपरिक ज्ञान को गलत तरीके से प्रस्तुत करती है। उन्होंने सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर की स्वस्तिक परियोजना, आयुष मंत्रालय, एआईसीटीई के आईकेएस प्रभाग और एनईपी 2020 जैसे कई भाषाओं में पारंपरिक प्रथाओं का दस्तावेजीकरण और सत्यापन करने वाले कार्यक्रमों का उल्लेख किया।
कार्यक्रम में जेएनयू के पर्यावरण विज्ञान संकाय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अश्विनी तिवारी ने भारत में बढ़ते जल संकट से निपटने में पारंपरिक वर्षा जल संचयन प्रणालियों के महत्व पर एक आकर्षक व्याख्यान दिया।
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