कोलकाता , दिसंबर 22 -- पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को चुनाव आयोग पर हमला करते हुए कहा कि वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के इशारे पर चल कर अनियोजित तरीके से काम कर रहा है।
सुश्री बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस के बूथ लेवल सहायकों की बैठक को संबोधित करते हुए आयोग पर केंद्र की सत्ताधारी पार्टी के इशारे पर काम करने और चुनावी सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के नाम पर असली मतदाताओं को बड़े पैमाने पर परेशान करने का आरोप लगाया।
सुश्री बनर्जी ने कहा, "मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी में ऐसा लापरवाह चुनाव आयोग नहीं देखा। वे सिर्फ़ इशारे पर काम कर रहे हैं।" उन्होंने पुनरीक्षण प्रक्रिया के इरादे और उसे लागू करने के तरीके पर सवाल उठाया। मतदाताओं को चिह्नित करने और उनका नाम हटाये जाने के तरीके पर आपत्ति जताते हुए मुख्यमंत्री ने रोज़मर्रा की उन सच्चाइयों का ज़िक्र किया, जिन्हें उनके मुताबिक चुनाव अधिकारी नज़रअंदाज़ कर रहे थे।
उन्होंने कहा, "एक वोटर 2002 में एक खास पते पर रहता था। आज वह वोटर शायद वहां न हो। कैसे हो सकता है? लोग वार्ड बदलते हैं, शादी के बाद महिलाएं दूसरी जगह चली जाती हैं, कुछ लोग अपना उपनाम बदल लेते हैं, कुछ नहीं बदलते। जिन लोगों ने अपना उपनाम बदला है, उन्हें मतदाता सूची से हटाया जा रहा है। किस आधार पर? वे अब भी मतदाता हैं।"सुश्री बनर्जी ने कहा कि फेरीवालों, दुकानदारों, झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों और गरीब लोगों से जटिल अंग्रेजी निर्देशों को समझने की उम्मीद नहीं की जा सकती। उन्होंने सवाल किया, "वे आपकी अंग्रेजी कैसे समझेंगे?" सुश्री बनर्जी ने भाजपा और चुनाव आयोग पर मिलकर काम करने का आरोप लगाते हुए कहा कि एसआईआर प्रक्रिया से संबंधित दिशानिर्देशों को बार-बार बदला गया है।
उन्होंने कहा, "दिशानिर्देशों को 24 बार बदला गया है। आप (चुनाव आयोग) और भाजपा दोषी हैं। आप देश को वंशवादी और तानाशाही राजनीति में डुबो रहे हैं। आपको कोई अंदाज़ा नहीं है कि चुनाव कैसे होते हैं।"उन्होंने दावा किया कि मतदाताओं को पहचान के सत्यापन में बहुत मुश्किल हो रही थी क्योंकि 2002 की मतदाता सूची से नाम, क्रम संख्या या हिस्सों का पता लगाने के लिये कोई सही व्यवस्था नहीं है।
सुश्री बनर्जी ने चुनाव आयोग से सवाल किया, "इतने लंबे समय तक एपिक संख्या से जानकारी निकालने की कोई व्यवस्था नहीं थी। कई मामलों में, 2002 की एपिक संख्या मौजूदा एपिक संख्या से मेल नहीं खाती। क्या यह एक अपराध नहीं है?" उन्होंने इस प्रक्रिया को "बिना नियोजन वाली तानाशाही" करार दिया।
उन्होंने आरोप लगाया कि एक अधिकारी भाजपा की दी गयी सूची के आधार पर मनमाने ढंग से नाम हटा रहे थे। उन्होंने कहा, "मैंने ऐसा बेशर्म आयोग कभी नहीं देखा।" सुश्री बनर्जी ने पूछा कि एसआईआर सिर्फ बंगाल में क्यों हो रहा है और असम, मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम और मेघालय जैसे राज्यों में इसी तरह की प्रक्रिया क्यों नहीं चल रही है। उन्होंने कहा कि असम में भी चुनाव होने हैं लेकिन बंगाल को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है।
उन्होंने अल्पसंख्यकों और मतुआ समुदाय से नहीं डरने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा, "वे आपको बांटने की कोशिश कर रहे हैं। डरो मत। एकजुट हो जाओ और इस कट्टरपंथी ताकत से लड़ो।"सुश्री बनर्जी ने पूरी प्रक्रिया को गलत बताते हुए कहा कि मतदाताओं की पहचान "पूरी तरह से गलत" थी। उन्होंने कहा कि एसआईआर जैसी चुनावी प्रक्रियाओं में आमतौर पर दो साल लगते हैं और उन्हें सिर्फ़ दो महीनों में जल्दबाजी में पूरा किया जा रहा है। उन्होंने पिछली प्रक्रिया को याद करते हुए कहा कि 2001 में हुए चुनावों के बाद एसआईआर शुरू हुआ और अंतिम सूची 2004 में प्रकाशित हुई, जिसके बाद परिसीमन हुआ।
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