पटना , अक्टूबर 03 -- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने शुक्रवार को आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के लिये महागठबंधन में सम्मानजनक सीटों की मांग की है।
भाकपा के राज्य सचिव रामनरेश पाण्डेय और माकपा के राज्य सचिव ललन चौधरी ने आज यहां संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि वर्ष 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को सत्ता से हटाकर महागठबंधन की सरकार बनाने के लिए सीटों के बंटवारे में बड़ी पार्टियाँ राजद और कांग्रेस को बड़ा दिल दिखाना होगा। उन्होंने कहा कि महागठबंधन के अंदर सीट समझौता में विलंब से परेशानी बढ़ रही है। संशय और ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है।
वामदल के नेताओं ने कहा कि राज्य में भाकपा एवं माकपा का सभी जिलों के विधानसभा क्षेत्रों में मजबूत जनाधार है।ऐसी परिस्थिति में संगठन की व्यापकता एवं क्षमता को देखते हुए महागठबंधन में अधिक से अधिक सीटों पर लड़ने का भाकपा एवं माकपा दोनों पार्टी का अधिकार बनता है। उन्होंने कहा कि महागठबंधन के सबसे बड़े दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की बड़ी जवाबदेही है कि बिहार में डबल इंजन की सरकार को हटाने के लिए घटक दलों से बेहतर समन्वय स्थापित करें और अविलंब सीटों का समझौता हो जिससे पूर्ण बिहार में शानदार चुनावी माहौल बने।
श्री पांडेय और श्री चौधरी ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस)-भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा प्रस्तुत चुनौतियों का प्रभावी ढंग से सामना करने के लिए बिहार में एक मजबूत विपक्ष की एकता की जरूरत है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक राजनीतिक दलों को एक साथ लाने में भाकपा और माकपा की भूमिका महत्वपूर्ण थी, क्योंकि यह जरूरी था, जिससे संवैधानिक मूल्यों की रक्षा और भाजपा की विभाजनकारी राजनीति का बिहार में व्यापक विरोध किया जा सके, लेकिन सीट बंटवारे में भाकपा और माकपा को सम्मानजनक सीटें नहीं मिली। भाकपा की सीटों पर कांग्रेस के बागी भी मैदान में उतर गए, जिसका असर चुनाव परिणाम पर भी पड़ा और महागठबंधन की सरकार बनते बनते रह गई।
वामदल के नेताओं ने कहा कि यही हाल लोकसभा चुनाव के दौरान भी देखने को मिला। उन्होंने कहा कि महागठबंधन को कई बाधाओं का सामना करना पड़ा, जिसने इसकी प्रभावशीलता को सीमित कर दिया। सीट बंटवारे पर बातचीत लगातार विवाद का विषय बना रहा। सीटों के बंटवारे के अलावा, महागठबंधन अकुशल समन्वय तंत्रों से भी जूझ रहा था जो अभियान रणनीतियों, संदेश और संसाधनों के प्रभावी उपयोग में सामंजस्य स्थापित करने में विफल रहा। कई दल कुछ क्षेत्रों में मनमाने ढंग से या एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा में काम करते रहे, जिससे उस सामूहिक शक्ति को नुकसान पहुंचा। सबसे गंभीर बात यह थी कि गठबंधन वैचारिक सुसंगतता के मूलभूत अभाव से जूझ रहा था। हालांकि सभी पार्टियां भाजपा के अधिनायकवाद और सांप्रदायिक एजेंडे का विरोध करते थे। गत विधानसभा और लोकसभा चुनाव से सबक लेते हुए इस बार सीटों के बंटवारे में किसी की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए और भाकपा एवं माकपा को सम्मानजनक सीटें मिले जिससे पूरे बिहार में एनडीए के खिलाफ व्यापक माहौल बनाया जा सके।
श्री पांडेय और श्री चौधरी ने कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में मजबूती प्रदान करने के लिए भाकपा और माकपा ने सभी जिलों में 06 से 08 अक्टूबर तक संयुक्त कार्यकर्ताओं की बैठक आयोजित करने का निर्णय लिया है।
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