नयी दिल्ली , नवंबर 29 -- नीति आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ अमिताभ कांत ने शनिवार को वैश्विक संघर्ष और अस्थिरता के बीच बौद्ध शिक्षाओं की समकालीन प्रासंगिकता पर बल दिया और कहा कि भारत बौद्ध सभ्यता का ऐतिहासिक केंद्र होने के नाते अपने बौद्ध स्थलों के भौतिक और आध्यात्मिक आयामों के संरक्षण के लिए नैतिक जिम्मेदारी रखता है।

डॉ. कांत ने यहां डॉ अंबेडर अंतरराष्ट्रीय केंद्र में आयोजित तीन दिवसीय बौद्ध सम्मेलन के दूसरे दिन कहा कि संरक्षण को राष्ट्रीय मिशन के रूप में देखा जाना चाहिए और ऐसा बौद्ध पर्यटन विकसित किया जाना चाहिए जो ज्ञान, चिंतन और समुदाय लाभ को बढ़ाए।

इस सम्मेलन में बौद्ध वास्तुकला, संस्कृति और उसके संरक्षण के ज्ञान के संवर्धन विशेष पर आयोजित सत्र की अध्यक्षत प्रो डॉ. अमरेश्वर गल्ला ने भारत में दस्तावेज़ीकरण, शैक्षणिक प्रशिक्षण और समुदाय-केंद्रित संरक्षण को सुदृढ़ बनाने की अपरिहार्य आवश्यकता पर बल दिया।

उन्होंने कहा, " भारत वही संरक्षित कर सकता है जिसे उसने पूरी तरह समझा हो। आज भी हजारों ग्रामीण बौद्ध स्थल बिना दस्तावेज़ और असुरक्षित हैं, और हमारी संस्थाओं में उन्हें संरक्षित रखने के लिए आवश्यक क्षमता, प्रशिक्षण और कानूनी जागरूकता का अभाव है। हमें मानचित्रण, डिजिटल दस्तावेज़ीकरण और समुदाय-नेतृत्व वाले संरक्षण में त्वरित निवेश करना होगा और विश्वविद्यालयों को आधुनिक अंतरराष्ट्रीय धरोहर कानून और भारत-केंद्रित धरोहर अध्ययन के पाठ्यक्रमों के साथ तुरंत सशक्त बनाना होगा। "हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के डॉ. प्रजापति त्रिवेदी ने लोगों से उन देशों से सीखने की अपील की, जहां पर बौद्ध आबादी अधिक है और जिन्होंने अपने धरोहर का सफलतापूर्वक संरक्षण किया है। उन्होंने अगले वर्ष के सम्मेलन के लिए 'धरोहर संरक्षण के ऑस्कर' के रूप में अंतरराष्ट्रीय सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं की प्रदर्शनी प्रस्तावित की, जिसमें मापनीय मानक, 'जीवंत धरोहर' की सुरक्षा और धरोहर प्रबंधन के लिए मजबूत संस्थागत ढांचे की आवश्यकता पर बल दिया।

इस सम्मेलन के दूसरे दिन आंध्र प्रदेश नगर्जुनकोण्डा प्रस्तावित राष्ट्रीय अकादमी के लिए पर चर्चा हुई। इस दौरान अकादमी के पाठ्यक्रम की आधारशिलाओं, कौशल विकास, शिक्षण पद्धति, ज्ञान प्रणाली, भौतिक संस्कृति, संरक्षण नैतिकता, समुदाय सहभागिता और क्षमता निर्माण पर विशेष ध्यान दिया गया। यह अकादमी न केवल असुरक्षित ग्रामीण बौद्ध धरोहर के संरक्षण के लिए समर्पित है, बल्कि ग्रामीण समुदायों को धरोहर-संबंधित आर्थिक अवसरों के माध्यम से सशक्त बनाने के उद्देश्य से भी पहली बार स्थापित की जा रही है।

सम्मेलन के दूसरे दिन बौद्ध वास्तुकला संस्कृति, जीवंत परंपराओं और मूर्त एवं अमूर्त धरोहर के परस्पर संबंध के ज्ञान को और गहरा करना रहा। इस दौरान भारत, नेपाल, रूस, थाईलैंड, श्रीलंका और अमेरिका के विद्वानों ने संरक्षण प्रथाओं, सहभागिता आधारित दृष्टिकोण, ऐतिहासिक पुनर्निर्माण, कौशल विकास, सतत तीर्थयात्रा और धरोहर ज्ञान प्रणाली पर अपने अनुभव और दृष्टिकोण साझा किये।

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