नयी दिल्ली , अक्टूबर 13 -- कांग्रेस ने कहा है कि जिस मंगोलिया के राष्ट्रपति उच्च स्तरीय प्रतिनिधि मंडल के साथ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में है वहां के लोगों में लद्दाख के बौद्ध भिक्षु 19वें कुशोक बकुला रिनपोछे अत्यंत लोकप्रिय हैं लेकिन उनका लद्दाख इन दिनों उद्वेलित है और सरकार से मरहम की प्रतीक्षा में है।

कांग्रेस संचार विभाग के प्रभारी जय राम रमेश मंगोलिया के राष्ट्रपति की भारत यात्रा का जिक्र करते हुए लद्दाख का मुद्दा उठाया और कहा कि केंद्र सरकार को लद्दाख के लोगों की मांग पर विचार कर उनकी समस्या का समाधान करना चाहिए।

उन्होंने कहा, "मंगोलिया के राष्ट्रपति आज एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ नई दिल्ली पहुंच चुके हैं।

भारत और मंगोलिया के बीच राजनयिक संबंध वर्ष दिसंबर 1955 में स्थापित हुए थे। भारत ने अक्टूबर 1961 में मंगोलिया को संयुक्त राष्ट्र में शामिल कराने में अहम भूमिका निभाई थी। इस रिश्ते में निर्णायक मोड़ तब आया जब प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अक्टूबर 1989 में लद्दाख के अत्यंत लोकप्रिय एवं सम्मानित बौद्ध भिक्षु 19वें कुशोक बकुला रिनपोछे को मंगोलिया में भारत का राजदूत नियुक्त किया। उन्होंने जनवरी 1990 में पदभार संभाला और असामान्य रूप से दस वर्षों तक वहाँ भारत के राजदूत रहे।"श्री रमेश ने कहा कि 1990 में साम्यवाद के पतन के बाद मंगोलिया को उसकी बौद्ध विरासत से दोबारा जोड़ने और उसे पुनर्जीवित करने में उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। मंगोलिया में आज भी उन्हें एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व के रूप में सम्मानपूर्वक स्मरण किया जाता है।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने हमेशा कुशोक बकुला रिनपोछे का सम्मान किया है और यही वजह है कि 20 जून 2005 को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने लेह हवाई अड्डे का नाम बदलकर कुशोक बकुला रिनपोछे हवाई अड्डा रखा और उन्हें "आधुनिक लद्दाख के शिल्पकार" के रूप में सम्मानित किया। बौद्ध धर्म का पुनर्जागरण- न केवल मंगोलिया और पूर्व सोवियत संघ में, बल्कि भारत में भी -काफ़ी हद तक उनके प्रयासों का परिणाम है।

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