जयपुर , दिसंबर 16 -- देश में सेवानिवृत्त एवं बुजुर्ग लोगों के लिए सीनियर लिविंग होम्स नया सहारा बन गया और दिल्ली-एनसीआर और मुंबई जैसे मेट्रो शहरों सहित अन्य बड़ों शहरों के पास के क्षेत्रों में सीनियर लिविंग होम्स की मांग बढ़ने लगी है।
जेएलएल-एएसएलआई की नवीनतम सीनियर लिविंग रिपोर्ट के अनुसार भारत में संगठित रिटायरमेंट कम्युनिटी की मांग तेजी से बढ़ रही है। रिपोर्ट के अनुसार देश में वर्तमान में 22 हजार 157 संगठित सीनियर लिविंग यूनिट्स हैं जबकि संभावित मांग 17 लाख वरिष्ठ परिवारों की है। इससे यह लगता है कि यह बाज़ार अभी शुरुआती चरण में है और इसमें विस्तार की बहुत संभावना है।
देश में सीनियर्स की आबादी तेजी से बढ़ रही है। वर्ष 2050 तक यह संख्या लगभग 35 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। इस बदलती तस्वीर के साथ रिटायरमेंट अब केवल आराम और घर में समय बिताने का दौर नहीं रहा। आज के 50 और 60 के दशक में प्रवेश करने वाले लोग ऐसे समुदायों की तलाश कर रहे हैं जहां वे सक्रिय रह सकें, सामाजिक रूप से जुड़े रहें और स्वतंत्र जीवन जी सके। इसके साथ ही उन्हें देखभाल के साथ उद्देश्यपूर्ण और सामुदायिक जीवन का अनुभव मिल सके। दिल्ली-एनसीआर, भिवाड़ी, गुरुग्राम, मुंबई, पुणे, बेंगलुरु, चेन्नई और कोयंबटूर जैसे शहरों में सीनियर लिविंग प्रोजेक्ट्स तेजी से विकसित हो रहे हैं। कई टाउनशिप कंपनियां इन्हें अपनी मेगाटाउनशिप का हिस्सा बनाकर चला रही हैं जबकि कुछ बड़े खिलाड़ी केवल सीनियर लिविंग पर फोकस करके पूरे देश में विस्तार कर रहे हैं।
इसमें खरीदार आमतौर पर 55 वर्ष से अधिक आयु के लोग होते हैं। इनमें से कई अकेले रहते हैं या जिनके बच्चे दूसरे शहर या विदेश में हैं। वे ऐसे समुदायों की तलाश में रहते हैं जहां मेडिकल सपोर्ट और इमरजेंसी सहायता तुरंत उपलब्ध हो। भारत में तेजी से बढ़ती सीनियर पॉपुलेशन और न्यूक्लियर फैमिली सिस्टम ने इन होम्स की मांग को और बढ़ाया है। आज मेट्रो सिटी में बढ़ते प्रदूषण के कारण भी सीनियर सिटीजन अब सीनियर लिविंग होम्स कि तरफ रुख कर रहे हैं। पिछले एक दशक में वरिष्ठ नागरिकों के लिए गिरना एक गंभीर स्वास्थ्य जोखिम के रूप में तेजी से उभरा है।
सीडीसी के अनुसार 65 वर्ष से अधिक आयु के हर चार में से एक व्यक्ति हर साल गिरता है। अकेले 2018 में लगभग 3.6 करोड़ गिरने की घटनाएं दर्ज की गईं जिनसे 8.4 करोड़ चोटें हुईं और 32 हजार से अधिक बुजुर्गों की मृत्यु हुई। गिरने की चोटों की गंभीरता इस बात पर निर्भर करती है कि दुर्घटना कैसे हुई, जिसमें कूल्हे की हड्डी टूटने से लेकर मस्तिष्क में गंभीर चोट तक शामिल है।
सीनियर लिविंग होम्स का डिजाइन स्वतंत्रता और सुरक्षा दोनों को ध्यान में रखकर किया जाता है। फ्लैट्स में नॉन-स्लिप फर्श, चौड़े रास्ते, ग्रैब रेल्स और आरामदायक मूवमेंट के लिए विशेष पाथवे बनाए गए हैं। मेडिकल सहायता हमेशा उपलब्ध रहती है, डॉक्टर ऑन कॉल होते हैं और नियमित हेल्थ चेकअप भी सुनिश्चित किया जाता है। सीनियर लिविंग समुदायों में रहने वाले लोग बताते हैं कि यहाँ उन्हें जीवन में दोबारा एक सुव्यवस्थित दिनचर्या का अनुभव होता है। सुबह की सैर, साझा भोजन, हॉबी क्लब और छोटे समारोह उनके दिन को सक्रिय और रोमांचक बनाते हैं। योग सत्र, म्यूजिक ग्रुप, गेम्स, रीडिंग क्लब और छोटी ट्रिप्स जैसे कार्यक्रम सामाजिक जुड़ाव को बढ़ाते हैं। वॉकिंग ट्रेल, मेडिटेशन ज़ोन और ओपन जिम से निवासियों को सक्रिय और संतुलित जीवन जीने का अवसर मिलता है।
एसोसिएशन ऑफ सीनियर लिविंग इंडिया को-फाउंडर और अशियाना हाउसिंग के जेएमडी अंकुर गुप्ता के अनुसार आज के वरिष्ठ नागरिक व्यवस्था, उद्देश्य और एक जीवंत सामाजिक माहौल चाहते हैं। वे सक्रिय रहना चाहते हैं, फिट रहना चाहते हैं और जुड़े रहना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि अशियाना की कम्युनिटीज़ इस तरह बनाई गई हैं कि उनमें स्वतंत्रता, सुरक्षा और समुदाय जीवन का संतुलन बना रहे। कई बच्चों की नौकरी और पढ़ाई बड़े शहरों या विदेश में होने के कारण बुजुर्ग उन पर रोजमर्रा की सहायता के लिए निर्भर नहीं रहना चाहते। वे अलग रहना पसंद करते हैं लेकिन यह आश्वासन भी चाहते हैं कि जरूरत पड़ने पर मदद तुरंत मिल जाएगी। सीनियर लिविंग कम्युनिटीज़ यही निजीपन और भरोसेमंद सपोर्ट का संयोजन उपलब्ध कराती हैं, जो उन्हें आकर्षक बनाता है। पिछले एक दशक में कंपनी ने पुणे, चेन्नई, जयपुर, गुरुग्राम और भिवाड़ी में 55 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए विशेष रूप से तैयार कई सीनियर लिविंग प्रोजेक्ट विकसित किए हैं, जो एक सोची समझी और उम्र अनुकूल जीवनशैली को केंद्र में रखते हैं।
मनासुम सीनियर लिविंग के सह-संस्थापक अनंथराम वी. वरयूर ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों को स्वाभाविक रूप से अधिक देखभाल की जरूरत होती है और ऐसी कम्युनिटीज़ में बुजुर्गों की सेहत और सुरक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता रहती है। डेवलपर्स और निवेशक अब इस क्षेत्र को सामाजिक जिम्मेदारी और आर्थिक मजबूती दोनों नजरों से देख रहे हैं। भारत में सीनियर लिविंग का उभार मूल रूप से सशक्तिकरण की कहानी है जहां ऐसे माहौल तैयार किए जा रहे हैं जो बुजुर्गों को गरिमा, उद्देश्य और अपनत्व के साथ उम्र बढ़ाने का अवसर दें।
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