पटना , नवंबर 25 -- बिहार में नवजात बच्चों की मां के दूध में यूरेनियम पाए जाने के बाद चिकित्सा वैज्ञानिकों ने इसके समाधान के लिए गहरे 'अनुवांशिक अध्ययन' की ज़रूरत पर बल दिया है।

बिहार में नवजात बच्चों के मां के दूध में यूरेनियम की मौजूदगी को गंभीरता से लेते हुए, चिकित्सा से जुड़े वैज्ञानिकों ने तुरंत और गहरे 'अनुवांशिक अध्ययन' का सुझाव दिया है। अभी हाल ही में एक वैज्ञानिक जांच में प्रदेश के कई जिलों से लिए गये मां के दूध के सैंपल में यूरेनियम-238 जैसे रेडियोएक्टिव और खतरनाक आइसोटोप की मौजूदगी का पता चला है।

'स्कूल ऑफ़ प्रिवेंटिव ऑन्कोलॉजी' के चेयरमैन डॉ. धीरेंद्र नारायण सिन्हा ने नवजात बच्चों के मां के दूध में यूरेनियम की मौजूदगी के नतीजों पर चर्चा करते हुए कहा कि नतीजे "गंभीर और चिंताजनक" हैं, और इसके प्रभाव समझने के लिए एक 'अनुवांशिक अध्ययन' की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि यूरेनियम के संपर्क में आने से माताओं और बच्चों दोनों में 'जीन म्यूटेशन' या असामान्यताएं हुई हैं या नही इसे समझने की आवश्यकता है औरनतीजों को देखते हुए उसके अनुवांशिक असर पर काम करने की ज़रूरत है।

श्री सिन्हा ने 'यूनीवार्ता' को बताया कि यूरेनियम की मौजूदगी दूध पिलाने वाली मां और बच्चे दोनों के जीन पर असर डाल सकती है और यह इस बात पर निर्भर करता है कि मां के छाती के दूध में यूरेनियम उपलब्ध है या नहीं। यूरेनियम के संपर्क में आने से शारीरिक और जैविक लक्षणों में किसी भी तरह की कमी आने का पता लगाने के लिए उसका 'अनुवांशिक अध्ययन' ज़रूरी है।

श्री सिन्हा ने महावीर कैंसर संस्थान और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली के शोध नतीजों का ज़िक्र करते हुए कहा कि यदि यूरेनियम का लेवल ज़्यादा है तो इससे जैविक लक्षणों में बदलाव आएगा और बच्चे पर अनुवांशिक असर पड़ेगा।

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