भोपाल , अक्टूबर 17 -- मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को सुझाए गए बिजली निजीकरण के नए तीनों विकल्पों को "बिजली व्यवस्था को अडानी और अन्य कॉरपोरेट घरानों को सौंपने की साजिश" बताया है।

राज्य सचिव जसविंदर सिंह ने आज जारी बयान में कहा कि यह कदम न केवल विद्युत व्यवस्था को निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया को तेज करेगा, बल्कि केंद्र सरकार की अपनी नीतिगत विफलताओं को छुपाने का भी प्रयास है। उन्होंने कहा कि यह अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के विद्युत कानून 2003 की विफलता का प्रमाण है।

जसविंदर सिंह ने कहा कि उस कानून को लाने का तर्क यह दिया गया था कि इससे विद्युत घाटा घटेगा, प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और उपभोक्ताओं को बिजली खरीदने के विकल्प मिलेंगे। परंतु बीते बीस वर्षों में इन सभी उद्देश्यों में असफलता ही हाथ लगी है। उन्होंने बताया कि देश भर में विद्युत कंपनियों का घाटा अब सात लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है।

माकपा नेता ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार इस असफलता की समीक्षा करने के बजाय कॉरपोरेट कंपनियों के मुनाफे को बढ़ाने के लिए 1952 के विद्युत कानून की मूल भावना को ही खत्म कर रही है। उन्होंने कहा कि उस कानून में बिजली को सेवा क्षेत्र में रखकर सबके लिए समान रूप से उपलब्ध कराने का प्रावधान था, लेकिन अब निजी कंपनियों को मुनाफे की गारंटी देकर गरीबों और आम जनता से सस्ती बिजली छीनने की तैयारी की जा रही है।

उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में टाटा राव कमेटी की सिफारिशों पर अमल के बाद विद्युत मंडल के उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण को छह कंपनियों में बांटने से भ्रष्टाचार और कमिशनखोरी बढ़ी है। पहले एक केंद्रीकृत क्रय समिति निर्णय लेती थी, अब छह अलग-अलग बोर्डों की बैठकों के बाद संयुक्त निर्णय होता है, जिससे कमीशन के बंटवारे का विस्तार हुआ है।

जसविंदर सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा सुझाए गए तीनों विकल्पों का लक्ष्य एक ही है, निजीकरण को बढ़ावा देना। पहले विकल्प में 51 प्रतिशत शेयर निजी कंपनियों को बेचने का प्रावधान है, जिससे प्रबंधन स्वतः उनके हाथों में चला जाएगा।

दूसरे विकल्प के तहत 26 प्रतिशत शेयर बेचने पर भी प्रबंधन निजी कंपनियों के अधीन हो जाएगा।

तीसरे विकल्प के अनुसार, यदि राज्य निजीकरण नहीं करते हैं, तो उन्हें सेबी के तहत पंजीयन कराना होगा, जबकि घाटे में चल रही बिजली कंपनियों का सेबी में पंजीयन संभव ही नहीं है।

माकपा ने मांग की है कि सरकार जनता की गाढ़ी कमाई से बनी बिजली विभाग की सार्वजनिक संपत्तियों को अडानी और अन्य कॉरपोरेट कंपनियों को सौंपने के बजाय विभिन्न राजनीतिक दलों, कर्मचारी संगठनों और विशेषज्ञों के साथ मिलकर विद्युत मंडल के पुनर्गठन और 1952 के कानून की भावना के अनुरूप सस्ती एवं पर्याप्त बिजली उपलब्ध कराने की दिशा में ठोस कदम उठाए।

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