जगदलपुर , अक्टूबर 13 -- छत्तीसगढ़ के बस्तर की पारंपरिक 'दोगा माला' आभूषण कला को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला सोमवार को संपन्न हुई।
सूरूज ट्रस्ट, बस्तर के तत्वावधान में 11 से 13 अक्टूबर तक गुड़ियापदर गाँव में आयोजित इस कार्यशाला में स्थानीय गोंड युवाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
'दोगा माला' जो गोंड आदिवासी पुरुषों द्वारा पहना जाने वाला एक पारंपरिक हार है, न केवल एक आभूषण बल्कि समुदाय की सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक एकता का प्रतीक माना जाता है। इसकी बनावट में सफेद, लाल और नीले रंग के मोती लाल ऊन के धागे में पिरोए जाते हैं।
सूरूज ट्रस्ट की अध्यक्ष दीप्ति ओग्रे ने बताया कि इस कार्यशाला का उद्देश्य केवल एक विलुप्त होती कला को बचाना नहीं, बल्कि स्थानीय युवाओं को उनकी जड़ों से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाना भी है। गुड़ियापदर जैसे गाँव, जहाँ एफआरए के तहत अधिकार प्राप्त विस्थापित समुदाय रहता है, में ऐसे प्रयास और भी अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं।
कार्यशाला में प्रतिभागियों को प्राकृतिक सामग्रियों जैसे सल्फी, सिहाड़ी की छाल और जौ के बीजों से धागा बनाने और मोती पिरोने की पारंपरिक तकनीक सिखाई गई। साथ ही, रंगों के सांस्कृतिक महत्व - लाल (ऊर्जा), सफेद (पवित्रता), नीला (आकाश) और काला (स्थिरता) - के बारे में भी जागरूक किया गया।
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