कोलकाता , नवंबर 27 -- पश्चिम बंगाल सरकार ने मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) की वित्तीय शक्ति बढ़ाकर अतिरिक्त मुख्य सचिव, प्रधान सचिव और विभागीय सचिव जैसे राज्य के वरिष्ठ नौकरशाहों के बराबर कर दी है।

राज्य सरकार की ओर से गुरुवार को यहां जारी आधिकारिक आदेश के मुताबिक यह कदम वित्त विभाग द्वारा लंबे समय से लंबित प्रस्ताव के तहत उठाया उठाया गया है। राज्यपाल की मंज़ूरी के साथ सीईओ अब प्रशासनिक व्यय और राज्य विकास योजना (एसडीएस ) श्रेणी के तहत खर्च को खुद मंज़ूरी दे सकेंगे।

अधिकारियों ने कहा कि इस कदम से सीईओ कार्यालय में प्रशासनिक प्रक्रिया आसान होने और परियोजनाओं से जुड़ी मंज़ूरी में मिलने तेज़ी आने की उम्मीद है। सरकार की ओर से यह कदम सीईओ कार्यालय पर बढ़ती राजनीतिक जांच के बीच उठाया गया है।

गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की प्रदेश इकाई ने बुधवार को चुनाव आयोग (ईसीआई) को ज्ञापन सौंपा, जिसमें पार्टी ने आरोप लगाया है कि सीईओ कार्यालय को राज्य सरकार की ओर से स्वतंत्र रूप से काम नहीं करने दिया जा रहा है। ज्ञापन में कहा गया, "पश्चिम बंगाल अकेला ऐसा राज्य है जहाँ सीईओ का कार्यालय राज्य के गृह विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण में काम करता है। बाकी हर राज्य में सीईओ एक स्वतंत्र विभाग के तौर पर काम करता है।"भाजपा ने ज्ञापन में चेतावनी दी कि इस तरह की संरचनात्मक निर्भरता 'स्वायत्तता एवं परिचालन तटस्थता पर समझौता करती है।चुनाव आयोग को सौंपे गए पत्र में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद समिक भट्टाचार्य के साथ-साथ लोकसभा सांसद खगेन मुर्मु और जगन्नाथ सरकार ने हस्ताक्षर किये हैं।

इससे पहले पार्टी ने 17 जुलाई को राज्य के मुख्य सचिव मनोज पंत को लिखे पत्र आयोग ने कहा था कि बंगाल में सीईओ कार्यालय के पास सीमित वित्तीय शक्तियां हैं और प्रशासनिक आज़ादी की कमी है।

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