नयी दिल्ली , दिसंबर 01 -- चुनाव आयोग ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दौरान पश्चिम बंगाल में बड़े पैमाने पर मतदाताओं के मताधिकार हनन के दावे 'अतिरंजित' और 'निहित राजनीतिक स्वार्थों' से प्रेरित हैं।

आयोग ने सांसद डोला सेन की ओर से एसआईआर आदेशों की वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका के जवाब में पेश जवाबी हलफनामे में दावा किया कि पुनरीक्षण अभ्यास संवैधानिक रूप से अनिवार्य है तथा यह एक नियमित और सुस्थापित प्रक्रिया का हिस्सा है।

आयोग ने कहा कि एसआईआर मतदाता सूची की शुद्धता और अखंडता बनाए रखने के लिए आवश्यक है। यह एक संवैधानिक दायित्व है जिसे उच्चतम न्यायालय ने टी.एन. शेषन,चुनाव आयोग बनाम भारत संघ (1995) मामले में मान्यता दी थी। आयोग ने जोर दिया कि विशेष पुनरीक्षण करने की शक्ति संविधान के अनुच्छेद 324 और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 15, 21 और 23 से प्राप्त होती है।

हलफनामे में यह भी कहा गया है कि इस तरह के पुनरीक्षण समय-समय पर किए जाते रहे हैं। इससे पहले 1962-66, 1983-87, 1992, 1993, 2002 और 2004 में किये गये थे।

आयोग ने पिछले दो दशकों में तेजी से हुये शहरीकरण और मतदाताओं की गतिशिलता (मोबीलिटी) का हवाला देते हुए कहा कि बड़े पैमाने पर प्रविष्टियों को जोड़ना और हटाना अब नियमित हो गया है। इसके कारण प्रविष्टियों का दोहराव और अशुद्धियों का खतरा बढ़ गया है। देश भर के राजनीतिक दलों की शिकायतों ने भी अखिल भारतीय एसआईआर आयोजित करने के निर्णय में योगदान दिया।

सांसद डोला सेन की याचिका में आरोप लगाया गया है कि एसआईआर के आदेश मनमाने और असंवैधानिक हैं। इससे वास्तविक मतदाताओं के गलत तरीके से नाम हटाए जा सकते हैं। आयोग ने सभी आरोपों का खंडन करते हुए याचिका को 'अस्वीकार्य और पूर्णतः गलत' बताया है।

आयोग ने जोर दिया कि उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी भी मतदाता को नहीं हटाया जाएगा और 'समावेशिता सुनिश्चित करने के लिए' एसआईआर दिशानिर्देशों में सुरक्षा उपाय शामिल किए गए हैं।

हलफनामे के अनुसार, मौजूदा 99.77 प्रतिशत मतदाताओं को पहले से ही भरे हुए गणना फॉर्म (प्री-फिल्ड एन्यूमेशन फॉर्म) प्रदान किए गए हैं और 70.14 प्रतिशत फॉर्म वापस प्राप्त हो गये हैं।

आयोग ने कहा कि ये आंकड़े बड़े पैमाने पर त्रुटियों, सामूहिक रूप से नामों को हटाने के दावों को कमजोर करते हैं। पश्चिम बंगाल में सामूहिक रूप से नामों को हटाने के आरोपों को साबित करने के लिए तथ्य नहीं हैं और इन्हें राजनीतिक हितों की पूर्ति करने वाली 'कहानी' के रूप में मीडिया के माध्यम से प्रचारित किया जा रहा है।

आयोग के अनुसार, बूथ स्तर के अधिकारियों (बीएलओ) को घरों का दौरा करने, फॉर्म वितरित करने और भरे हुए फॉर्म एकत्र करने की आवश्यकता होती है। यदि कोई घर बंद पाया जाता है, तो बीएलओ को नोटिस छोड़ना होता है और तीन प्रयास करने होते हैं। उन्हें गणना के दौरान दस्तावेज एकत्र करने से प्रतिबंधित किया गया है। यह बदलाव 27 अक्टूबर के दूसरे चरण के एसआईआर आदेश में किया गया था।

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