नयी दिल्ली , दिसंबर 1 -- उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्र सरकार से हाल ही में बंगलादेश निर्वासित की गयी एक गर्भवती महिला और उसके आठ वर्षीय पुत्र को वापस लाने की संभावना को लेकर केंद्र सरकार से पर जानकारी मांगी और कहा कि उनके मामले को 'पूरी तरह से मानवीय आधार पर' देखा जाना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। गौरतलब है कि कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बंगलादेश निर्वासित कई व्यक्तियों को वापस लाने का निर्देश दिया गया था।
इस मामले को अब आगे की सुनवाई के लिए 3 दिसंबर को सूचीबद्ध किया गया है।
सुनवाई के दौरान प्रतिवादियों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने न्यायालय को बताया कि प्रतिवादी भोदू शेख की बेटी सोनाली खातून को जब निर्वासित किया गया था, तब वह गर्भावस्था में थी और उसके आठ वर्षीय बेटे साबिल को भी उसके साथ भेज दिया गया था।
इस मामले में महाधिवक्ता तुषार मेहता केंद्र सरकार की ओर से दलील पेश की, जबकि वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पश्चिम बंगाल सरकार का प्रतिनिधित्व किया।
मुख्य न्यायाधीश ने महिला की स्थिति को संज्ञान में लेते हुए महाधिवक्ता से केवल महिला और बच्चे के संबंध में विशिष्ट निर्देश लेने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि यह निर्देश 'केवल मानवीय आधार' पर दिया जा रहा है।
महाधिवक्ता ऐसा करने के लिए सहमत हुए, लेकिन उन्होंने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि इस तरह के कदम से क्या मिसाल कायम हो सकता है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इस मुद्दे को आधिकारिक तौर पर रिकॉर्ड पर कुछ भी रखे बिना संबोधित किया जा सकता है।
श्री हेगड़े ने कहा कि माँ और बच्चे को अलग नहीं किया जाना चाहिए और न्यायालय को सूचित किया कि पिता को भी निर्वासित कर दिया गया था, हालांकि पीठ ने इस अनुरोध के संबंध में कोई टिप्पणी नहीं की।
उल्लेखनीय है कि कलकत्ता उच्च न्यायालय के सितंबर भोदू शेख द्वारा दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को निर्वासित व्यक्तियों को चार सप्ताह के भीतर वापस लाने का निर्देश दिया था।
उच्च न्यायालय ने निर्वासन प्रक्रिया को अनुचित पाया था और कहा था कि नागरिकता के प्रश्नों को एक उपयुक्त मंच के समक्ष सबूतों के आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए।
श्री शेख ने तर्क दिया था कि उसकी बेटी, दामाद और पोता जन्म से भारतीय नागरिक हैं और केवल दिल्ली में रोजगार के लिए आए हुए थे। उन्होंने आरोप लगाया कि एक पहचान सत्यापन अभियान के दौरान, उन्हें हिरासत में लिया गया और 26 जून, को बंगलादेश निर्वासित कर दिया गया, जबकि उनकी बेटी पूर्ण-गर्भवती थी।
श्री शेख ने कहा कि निर्वासन गृह मंत्रालय द्वारा 02 मई, को जारी निर्देशों के उल्लंघन में किया गया था, क्योंकि कोई उचित जाँच नहीं की गई थी और बंदियों को दो दिनों के भीतर हटा दिया गया था।
अधिकारियों ने जवाबी दलील दी थी कि बंदियों ने दिल्ली पुलिस को बताया था कि वे बंगलादेशी नागरिक हैं और वे आधार कार्ड, राशन कार्ड, वोटर आईडी या भारतीय नागरिकता साबित करने वाले किसी अन्य दस्तावेज को पेश करने में विफल रहे थे।
उच्च न्यायालय ने हालांकि माना था कि पुलिस को दिए गए बयानों को स्वैच्छिक नहीं माना जा सकता है और हो सकता है कि उन्हें दबाव में प्राप्त किया गया हो। इसलिए, न्यायालय ने उन्हें वापस लाने का आदेश दिया था।
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