भोपाल , अक्टूबर 26 -- पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं मध्यप्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव ने आज भोपाल में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में राज्य और केंद्र सरकार पर किसान विरोधी नीतियों को लेकर तीखे सवाल दागे। उन्होंने किसानों की अनदेखी, मंडी बोर्ड के आर्थिक संकट, भावांतर योजना की विफलता और कृषि तंत्र के निजीकरण की साजिश जैसे मुद्दों पर सरकार को कठघरे में खड़ा किया।
श्री यादव ने कहा कि प्रदेश में सोयाबीन का समर्थन मूल्य (5328 रुपये प्रति क्विंटल) तय होने के बावजूद किसानों को केवल 3500 रुपये तक के भाव मिल रहे हैं। मक्का और कपास उत्पादक किसानों को भी एमएसपी नहीं मिल पा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार किसानों की समस्याओं को अनदेखा कर ठेकेदारों और व्यापारियों के हित में फैसले ले रही है।
कांग्रेस नेता ने कहा कि भावांतर योजना पूरी तरह विफल हो चुकी है, फिर भी सरकार इसे दोबारा लागू करने पर तुली हुई है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब मंडी बोर्ड पहले से ही आर्थिक संकट में है, तो उसके नाम पर 1500 करोड़ रुपये का नया कर्ज क्यों लिया जा रहा है। यह कदम मंडी बोर्ड को "कर्ज के जाल में फंसाकर खत्म करने की साजिश" जैसा प्रतीत होता है।
उन्होंने बताया कि मंडी बोर्ड पर पहले से 1700 करोड़ रुपये की लेनदारी राज्य सरकार पर है। प्रदेश की 259 मंडियों में से लगभग 150 में सचिव नहीं हैं, और कई जगह एक सचिव को चार-पांच मंडियों का प्रभार दिया गया है। इसके बावजूद सरकार मंडी अधिनियम 1972 की अनदेखी कर नए टेंडर जारी कर रही है।
श्री यादव ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री मोहन यादव और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान मंडी बोर्ड को कर्ज में डुबोकर राज्य की मंडियों को गिरवी रखने की पटकथा लिख रहे हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि जब मंत्री और विधायक खुद भावांतर योजना का विरोध कर चुके हैं, तो इसे दोबारा लागू करने की क्या जरूरत है।
उन्होंने बुरहानपुर के केला किसानों की बदहाली का मुद्दा भी उठाया और कहा कि अतिवृष्टि से फसल खराब होने के बावजूद उन्हें न तो बीमा मिला और न ही राहत राशि। फसल बीमा योजना का लाभ केवल चुनिंदा जिलों के कुछ किसानों तक सीमित है।
श्री यादव ने कहा कि सरकार की नीतियां किसानों के बजाय व्यापारियों और ठेकेदारों के पक्ष में हैं। उन्होंने मांग करते हुए कहा कि - मंडी बोर्ड को आर्थिक संकट से बचाया जाए। भावांतर योजना बंद कर एमएसपी पर खरीदी सुनिश्चित की जाए। केला किसानों के लिए फसल बीमा और उचित मूल्य व्यवस्था की जाए। मंडियों में सचिवों की नियुक्ति की जाए। फसल बीमा योजना को सभी किसानों तक प्रभावी रूप से लागू किया जाए। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी किसानों के संघर्ष में साथ खड़ी है, और सरकार की "किसान विरोधी नीतियों" के खिलाफ प्रदेशव्यापी आंदोलन चलाएगी।
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