पटियाला , नवंबर 10 -- पंजाब के वरिष्ठ सेवानिवृत्त इंजीनियरों ने सोमवार को बिजली क्षेत्र के कामकाज में बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप, स्वायत्तता के ह्रास और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में तकनीकी विशेषज्ञता की बढ़ती उपेक्षा पर गहरी निराशा व्यक्त की है।
वरिष्ठ इंजीनियरों ने मुख्यमंत्री भगवंत मान को लिखे एक पत्र में निदेशक (उत्पादन) की बर्खास्तगी के आदेश और रोपड़ थर्मल प्लांट के मुख्य अभियंता के निलंबन को तत्काल वापस लेने की मांग की है। उन्होंने निजी बिजली खरीद समझौतों की जांच उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की सहायता से कराने की मांग की है। उन्होंने यह भी मांग की है कि विद्युत अधिनियम 2003 के अनुसार कॉर्पोरेट प्रशासन और व्यावसायिकता के सिद्धांतों को सुदृढ़ किया जाये।
यह बैठक पटियाला में आयोजित की गयी थी और इसमें 60 से अधिक इंजीनियरों ने भाग लिया, जिन्होंने रोपड़ थर्मल प्लांट के मुख्य अभियंता के निलंबन और निदेशक (उत्पादन) को सेवा से हटाने पर विचार-विमर्श किया। इंजीनियरों ने मुख्य परिचालन और नीतिगत मामलों में निजी, गैर-तकनीकी सलाहकारों की भागीदारी की भी कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि इस तरह की प्रथाएं पेशेवर स्वायत्तता को कमज़ोर करती हैं, जवाबदेही को कमज़ोर करती हैं और बिजली क्षेत्र की दक्षता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) के मुख्य संरक्षक पदमजीत सिंह ने कहा कि यह भ्रामक धारणा फैलाई जा रही है कि पीएसपीसीएल को अपनी पछवाड़ा कोयला खदानों से ज़्यादा लागत उठानी पड़ती है। वास्तव में इससे सालाना 500 करोड़ रुपये की बचत हुई है और यह लाभ अगले 30 वर्षों तक जारी रहेगा। मीडिया में बताया जा रहा है, ऐसे फैसलों का असली कारण मंत्रियों की सहमति के बिना 150 मेगावाट सौर ऊर्जा परियोजना समझौते (पीपीए) पर हस्ताक्षर करना है। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित पीपीए 24 घंटे बिजली आपूर्ति के लिए था, न कि केवल दिन के समय। यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के उपक्रम, सोलर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा दिया गया था। इन बुनियादी तथ्यों को जल्दबाजी में अनदेखा कर दिया गया और इसकी भारी संस्थागत लागत चुकानी पड़ी।
पूर्व निदेशक ट्रांसमिशन अजय कुमार कपूर ने कहा कि निजी ताप विद्युत संयंत्र अधिक कुशल सुपरक्रिटिकल तकनीक पर काम करते हैं, जबकि रोपड़ थर्मल एक पुराना सबक्रिटिकल संयंत्र है। यदि पंजाब की विद्युत उपयोगिताएं नियमित सरकारी विभागों तक सीमित हो जाएंगी तो राज्य की विद्युत आपूर्ति, वित्त और संस्थागत विश्वसनीयता को अपूरणीय क्षति होगी।
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