लखनऊ , अक्टूबर 30 -- डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान (आरएमएलआईएमएस), लखनऊ ने चिकित्सा विज्ञान में एक नई उपलब्धि दर्ज करते हुए पार्किंसन रोग के लिए पहली बार डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (डीबीएस) सर्जरी सफलतापूर्वक की है।
यह सर्जरी चार अक्टूबर को संस्थान के न्यूरोलॉजी और न्यूरोसर्जरी विभाग की संयुक्त टीम द्वारा सम्पन्न की गई। यह उपलब्धि प्रदेश में उन्नत पार्किंसन रोग उपचार की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
मरीज आर.एम. (68) पिछले कई वर्षों से पार्किंसन रोग से पीड़ित थे। उन्हें चलने में कठिनाई, शरीर में जकड़न और हाथों में कंपन जैसी गंभीर समस्यायें थीं, जिससे उनकी जीवन गुणवत्ता प्रभावित हो रही थी। जिसके बाद इलाज को लेकर परिजनों ने संस्थान के डॉ. दिनकर कुलश्रेष्ठ की दिखाया।
पहले तो मरीज को दवाएं दी गई पर, पर्याप्त लाभ न मिलने पर सर्जिकल उपचार का निर्णय लिया गया। विभिन्न जांच के बाद सर्जरी डॉ. दीपक सिंह, प्रोफेसर, न्यूरोसर्जरी विभाग के नेतृत्व में की गई। इस दौरान मुंबई से आए डीबीएस विशेषज्ञ डॉ. नरेन नाइक ने तकनीकी सहयोग प्रदान किया।
सर्जरी के बाद 30 अक्टूबर को मरीज के डीबीएस डिवाइस को सक्रिय कर इलेक्ट्रोड की सेटिंग्स को समायोजित किया गया। जिसका परिणाम यह हुआ कि मरीज के हाथों के कंपन में कमी आई और वे बिना सहारे चलने में सक्षम हो गए।
सर्जरी को लेकर डॉ. दिनकर कुलश्रेष्ठ ने कहा, "डीप ब्रेन स्टिमुलेशन ने पार्किंसन रोग के उपचार का स्वरूप बदल दिया है। यह प्रक्रिया मरीजों की गतिशीलता बढ़ाती है, कंपन को नियंत्रित करती है और दवाओं के दुष्प्रभावों से राहत देती है।"डॉ. दीपक सिंह ने बताया कि "यह एक सुरक्षित एवं प्रभावी न्यूरोसर्जिकल प्रक्रिया है, जो आधुनिक न्यूरो-नेविगेशन तकनीक के माध्यम से न्यूनतम जोखिम के साथ की जाती है। जिन मरीजों पर दवाएँ असर नहीं करतीं, उनके लिए यह प्रक्रिया जीवन की गुणवत्ता में व्यापक सुधार लाती है।"गौरतलब है कि डीबीएस एक उन्नत न्यूरोसर्जिकल प्रक्रिया है, जिसका उपयोग पार्किंसन रोग, एसेन्शियल ट्रेमर और डिस्टोनिया जैसे गतिशीलता संबंधी विकारों में किया जाता है। इसमें मस्तिष्क के विशिष्ट हिस्सों में अत्यंत पतले इलेक्ट्रोड लगाए जाते हैं, जो सीने में प्रत्यारोपित छोटे बैटरी-चालित उपकरण से जुड़े होते हैं। यह उपकरण हल्के विद्युत संकेत भेजकर मस्तिष्क की असामान्य गतिविधियों को नियंत्रित करता है, जिससे मरीज के लक्षणों में सुधार होता है। यह प्रक्रिया मस्तिष्क के ऊतकों को नुकसान पहुंचाये बिना लंबे समय तक राहत प्रदान करती है, और उपकरण की सेटिंग्स जरूरत अनुसार समायोजित की जा सकती हैं।
हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित