कोलकाता , दिसंबर 17 -- चुनाव आयोग के जिलावार आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल में हुए मतदाता सूची में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दौरान मतदाताओं के नाम हटाए जाने के सबसे ज्यादा मामले कोलकाता और उसके आसपास के क्षेत्रों में केंद्रित हैं। पश्चिम बंगाल के कोलकाता, उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना और हावड़ा जिले मिलकर राज्य में कुल चिन्हित मतदाताओं का बड़ा हिस्सा कवर करते है।

राज्य में कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 7.66 करोड़ है, जिनमें से लगभग 58.2 लाख नाम (7.6 प्रतिशत) एसआईआर के दौरान असंग्रहणीय के रूप में वर्गीकृत किए गए हैं, जिन्हें एकत्रित नहीं किया जा सका है।

इनमें से लगभग 22.7 लाख चिन्हित मतदाता, जो राज्य के कुल चिन्हित मतदाताओं का लगभग 39 प्रतिशत हैं, केवल उपरोक्त चार जिलों में हैं जो ग्रेटर कोलकाता शहरी क्षेत्र का हिस्सा हैं।

एसआईआर के दौरान संकलित आंकड़ों के अनुसार, केवल कोलकाता में 2.16 लाख से अधिक असंग्रहणीय फॉर्म हैं, जो जिले के कुल मतदाताओं का लगभग 24 प्रतिशत है और राज्य में कहीं भी सबसे अधिक प्रतिशत है।

मध्य एवं दक्षिण कोलकाता के कई विधानसभा क्षेत्रों में चिन्हित नामों का हिस्सा 30 प्रतिशत से अधिक हो गया है, जिनमें चौरंगी, जोरासांको और कोलकाता पोर्ट सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र हैं।

कोलकाता से सटे सबसे घनी आबादी वाले एवं शहरीकृत जिलों में से एक, उत्तर 24 परगना में भी यही प्रवृत्ति देखने को मिलती है।

जिले में 7.9 लाख से अधिक फॉर्म जमा नहीं हुए हैं, जो कुल मतदाताओं का लगभग 9.5 प्रतिशत है। भाटपारा (20.42 प्रतिशत), बैरकपुर (19 प्रतिशत), नोआपारा (13.38 प्रतिशत) और बिधाननगर (18.17 प्रतिशत) जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं के नाम चिन्हित किए गए हैं, जिसका मुख्य कारण लापता, स्थायी रूप से स्थानांतण या अनुपस्थित रहना हैं।

दक्षिण 24 परगना में, असंग्रहणीय फॉर्मों की संख्या 8.18 लाख से अधिक है, जो मतदाताओं का लगभग 9.5 प्रतिशत है, जिससे यह जिला राज्यव्यापी एसआईआर में शीर्ष योगदानकर्ताओं में से एक बना हुआ है।

कस्बा (18 प्रतिशत), जादवपुर (17.47 प्रतिशत), बेहाला पूर्व (17.03 प्रतिशत) और बेहाला पश्चिम (16.5 प्रतिशत) जैसी शहरी एवं अर्ध-शहरी निर्वाचन क्षेत्रों में जिले के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में बहुत ज्यादा आंकड़े दर्ज किए गए हैं।

पड़ोसी हावड़ा जिला भी एक प्रमुख केंद्र बनकर उभरा है, जहां लगभग 4.47 लाख नाम चिन्हित किए गए हैं, जो जिले के कुल मतदाताओं का लगभग 11 प्रतिशत है। हावड़ा उत्तर (26.96 प्रतिशत), बल्ली (19.51 प्रतिशत) और हावड़ा दक्षिण (17.77 प्रतिशत) जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में, नाम हटाए जाने का मुख्य कारण वे मतदाता हैं जिन्हें स्थायी रूप से विस्थापित या लापता के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

कुल मिलाकर, ये चार जिले - कोलकाता, उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना और हावड़ा - राज्य में सभी असंग्रहणीय प्रपत्रों के एक तिहाई से अधिक के भागीदार हैं, भले ही वे राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का एक छोटे हिस्से का ही प्रतिनिधित्व करते हों।

सीईओ कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर यूनीवार्ता से कहा, "बड़े शहरों और औद्योगिक क्षेत्रों में अक्सर लोग पलायन करते हैं। लोग काम की तलाश में कहीं चले जाते हैं, किराए के मकान बदलते हैं या अपने चुनावी विवरण को औपचारिक रूप से अपडेट किए बिना ही शहर छोड़ देते हैं।" उन्होंने आगे कहा कि संशोधन प्रक्रिया में मानक सत्यापन मानदंडों का पालन किया गया है।

एक अन्य अधिकारी ने कहा, "आजीविका की तलाश में पड़ोसी देशों से महानगर क्षेत्र में लगातार जनसंख्या का आवागमन होता रहता है। कई मामलों में, क्षेत्र सत्यापन के दौरान ऐसे लोगों के पास वैध दस्तावेज नहीं पाए जाते हैं।"एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, "कोलकाता और उसके आसपास के जिले पूर्वी भारत और उससे आगे के क्षेत्रों से प्रवासी मजदूरों को आकर्षित करते हैं। इनमें से कई लोगों के पास स्थायी पते या वैध कागजात नहीं होते हैं, जिससे एसआईआर के दौरान वे अदृश्य या अप्रमाणित हो जाते हैं। इससे ग्रामीण जिलों की तुलना में शहरी जिलों में अधिक संख्या में नाम हटाए जाने की संभावना रहती है।"हालांकि चुनाव अधिकारियों के अनुसार, नाम हटाने से मतदाताओं को स्थायी रूप से मताधिकार से वंचित नहीं किया जाता है।

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