नयी दिल्ली , नवंबर 11 -- राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण को आर्थिक कार्यकलाप में बाधा नहीं अपितु मानव विकास का अभिन्न अंग माना जाना चाहिए ।

श्री हरिवंश ने आज कोहिमा में आयोजित 22वें कॉमनवेल्थ पार्लियामेंट्री एसोसिएशन (सीपीए) इंडिया जोन III सम्मेलन में "जलवायु परिवर्तन: उत्तर पूर्वी क्षेत्र में हाल ही में बादल फटने और भूस्खलन के आलोक में" विषय पर अपने व्याख्यान में कहा कि यद्यपि पूर्वोत्तर क्षेत्र भारत के कुल भू-भाग का लगभग आठ प्रतिशत है, फिर भी यह देश का लगभग इक्कीस प्रतिशत वनाच्छादित क्षेत्र है। इन प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को राष्ट्रीय प्राथमिकता बताते हुए, उन्होंने जोर देकर कहा कि वित्त आयोग ने भी अपनी पर्यावरणीय परिसम्पत्तियों के संरक्षण हेतु राज्यों को अधिक धनराशि आवंटित करने की सिफारिश करके इनकी महत्ता को स्वीकार किया है।

उन्होंने जलवायु परिवर्तन की विशिष्ट चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझने के लिए उच्च-गुणवत्ता वाले अनुसंधान में निवेश के महत्व पर बल दिया । उन्होंने कहा, "वैज्ञानिक अनुसंधान में निवेश ही इन जटिल मुद्दों का एकमात्र दीर्घकालिक समाधान है।" उन्होंने कहा कि शोध संस्थानों के बीच निवेश और बेहतर समन्वय भी उतना ही आवश्यक है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत सरकार आगामी वर्षों में अधिक धनराशि और तकनीकी सहायता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न स्तरों पर व्यापक वार्ता में लगी हुई है ।

श्री हरिवंश ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उठाए गए सक्रिय कदमों, मौजूदा नीतियों की समीक्षा, हरित बजट को बढ़ावा देने और सतत कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए जलवायु परिवर्तन पर एक विशेष समिति की स्थापना की सराहना की। उन्होंने शहरी स्थानीय निकायों और ग्राम परिषदों पर विधानसभा की समिति के गठन का भी उल्लेख किया। बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन, जल संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के माध्यम से जमीनी स्तर पर अनुकूलन सुदृढ़ करना इस दिशा में स्वागत योग्य कदम हैं।

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