नैनीताल , अक्टूबर 22 -- दीपों का पर्व दीपावली देशभर में पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाया गया। चारों ओर दीयों की रोशनी, मिठाइयों की मिठास और पटाखों की गूंज के बीच पक्षियों की एक मूक पीड़ा भी देखने को मिली। यह वह पीड़ा जो उन नन्हे परिंदों को झेलनी पड़ती है, जो इंसानी शोर से डरकर अपने बसेरे छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं।

उत्तराखंड जैसे हरे-भरे और जैव विविधता से भरपूर पर्वतीय क्षेत्रों में यह समस्या और भी गंभीर है। नैनीताल, भीमताल, भवाली और आसपास के इलाकों में रहने वाले स्थानीय लोगों का कहना है कि दीपावली की रात जब पटाखों का शोर आसमान तक गूंजता है, तो सामान्य दिनों में घोंसलों या पेड़ों पर दिखने वाले गौरैया, बुलबुल, किंगफिशर, चीर फीजेंट, स्टेपी ईगल और ब्राउन वुड आउल जैसे पक्षी अचानक गायब हो जाते हैं। ये भयभीत परिंदे अपने घोंसले छोड़कर कई किलोमीटर दूर के शांत जंगलों की ओर उड़ जाते हैं। कई तो वापस लौट ही नहीं पाते।

वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, पटाखों से निकलने वाली 140 से 150 डेसिबल तक की तेज आवाज़ पक्षियों के लिए बेहद खतरनाक होती है। पक्षियों की श्रवण क्षमता इंसानों की तुलना में कई गुना अधिक होती है, इसलिए यह धमाका उनके लिए असहनीय हो जाता है। लगातार तेज आवाज़ों के कारण पक्षी दिशाभ्रम का शिकार हो जाते हैं और घबराहट में पेड़ों, इमारतों या बिजली के तारों से टकराकर घायल हो जाते हैं या उनकी मौत हो जाती है। कई मामलों में पटाखों से उत्पन्न धुआं और प्रदूषण उनकी सांस लेने की क्षमता को भी प्रभावित करता है।

नैनीताल और उसके आसपास करीब 700 से अधिक प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं, जिनमें रेड हेडेड वल्चर, ग्रेट बारबेट, ग्रेट स्पॉटेड ईगल, ब्लू विंग्ड मिन्ला और एशियन पैराडाइज फ्लाई कैचर जैसी दुर्लभ प्रजातियां शामिल हैं।

स्थानीय पक्षी प्रेमी संजय छिम्वाल के अनुसार दीपावली पर पटाखों का शोर केवल वयस्क पक्षियों के लिए ही नहीं, बल्कि अंडों में पल रहे भ्रूणों के लिए भी खतरनाक होता है। यह उनके प्रजनन चक्र को बाधित करता है।

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