लखनऊ , अक्टूबर 13 -- किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू), लखनऊ के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त ने लोगों से अपील की है कि इस दीपावली पर खुशी के साथ-साथ सावधानी भी बरतें और प्रदूषणमुक्त पर्व मनाएं। उन्होंने कहा कि दीपावली प्रकाश और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है, इसे पटाखों की धमक और धुएं से नहीं, बल्कि दीपों की रोशनी से मनाना चाहिए।

डॉ. सूर्यकान्त ने बताया कि आतिशबाजी का अत्यधिक प्रयोग दीपावली की सबसे गंभीर समस्या बन चुका है। इससे वायु प्रदूषण का स्तर 200 प्रतिशत तक बढ़ जाता है, जो फेफड़ों, हृदय, आंखों और त्वचा पर हानिकारक प्रभाव डालता है। उन्होंने कहा कि पटाखों से निकलने वाले धुएं में कैडमियम, बेरियम, रूबीडियम, स्ट्रॉन्शियम और डाइऑक्सिन जैसे जहरीले रसायन होते हैं, जो हवा, जल और मिट्टी को भी प्रदूषित करते हैं।

उन्होंने बताया कि देश में लगभग 4 करोड़ लोग अस्थमा और 6 करोड़ लोग सीओपीडी जैसी सांस संबंधी बीमारियों से पीड़ित हैं। ऐसे रोगियों के लिए दीपावली का समय बेहद खतरनाक साबित हो सकता है। इसलिए मरीज घर के अंदर रहें, मास्क और इनहेलर का नियमित उपयोग करें, तथा जरूरत पड़ने पर तुरंत चिकित्सक से परामर्श लें।

डॉ. सूर्यकान्त ने सफाई और पेंटिंग के दौरान धूल व रसायनों से बचने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि धूल और डस्ट माइट्स सांस की बीमारियों को बढ़ा सकते हैं, इसलिए अस्थमा या एलर्जी वाले व्यक्ति सफाई या पेंटिंग के समय कमरे से बाहर रहें। हृदय और उच्च रक्तचाप के मरीजों को भी दीपावली के दौरान सावधानी बरतने की चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा कि पटाखों की तेज आवाज और धुआं रक्तचाप बढ़ा सकता है और बेचैनी, सिरदर्द या घबराहट जैसी स्थिति पैदा कर सकता है। ऐसे मरीजों को भीड़ और शोर से दूर रहना चाहिए।

उन्होंने आंखों और त्वचा की सुरक्षा पर जोर देते हुए कहा कि पटाखा लगने पर आंख को न रगड़ें, साफ पानी से धोएं और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। सिंथेटिक कपड़ों की बजाय सूती वस्त्र पहनें और बच्चों को पटाखों से दूर रखें।

पर्यावरण की दृष्टि से डॉ. सूर्यकान्त ने इलेक्ट्रॉनिक या कम्प्रेस्ड एयर तकनीक वाली आतिशबाजी को बेहतर विकल्प बताया और चीन निर्मित पटाखों से बचने की सलाह दी।

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