फतेहगढ़ साहिब , अक्टूबर 16 -- मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के सचिव डॉ अभिलाक्ष लिखी ने गुरुवार को फतेहगढ़ साहिब जिला का दौरा किया और मछलीपालकों एवं मत्स्य उद्यमियों से उनके मुद्दों और चुनौतियों को समझने के लिए चर्चा की।

डाॅ लिक्की ने दौलतपुर गांव, बसी पठाना में आधुनिक आर.ए.एस सुविधाओं का दौरा करते हुए प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) सहित केंद्रीय योजनाओं के अंतर्गत चल रहे मत्स्य पालन परियोजनाओं और गतिविधियों की समीक्षा की। उन्होंने स्थानीय मछलीपालकों द्वारा अपनायी गयी नवोन्मेषी प्रथाओं के बारे में जानकारी ली, जिन्होंने बंजर भूमि को उत्पादक जलीय कृषि (एक्वाकल्चर) हब में बदलकर क्षेत्र में रोजगार और आजीविका के अवसर सृजित किये हैं। इस अवसर पर करीब 35-40 प्रगतिशील मछलीपालक उपस्थित हुए और उन्होंने अपने अनुभव और सुझाव साझा किये।

डॉ. लिखी ने प्रौद्योगिकी-आधारित मछली पालन, मछलीपालकों की क्षमता निर्माण, आय में वृद्धि और ग्रामीण आजीविका को सुदृढ़ करने के लिए प्रजातियों के विविधीकरण के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने केंद्रीय सरकार की प्रतिबद्धता दोहरायी कि आधुनिक मत्स्य पालन प्रथाओं को अवसंरचना विकास, नवाचार और क्षमता संवर्धन के माध्यम से समर्थन मिलेगा। यह दौरा इस बात को भी उजागर करता है कि केंद्र सरकार खारे पानी वाले राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में मत्स्य पालन को प्राथमिकता दे रही है। इन राज्यों में अक्सर कृषि भूमि खारेपन से प्रभावित होती है, और जलीय कृषि (एक्वाकल्चर) के माध्यम से भूमि के अनुकूल उपयोग के साथ आजीविका के कई अवसर सृजित किये जा सकते हैं।

भारत के अंतरदेशीय जल संसाधनों की संभावनायें विशाल हैं और अभी तक अपेक्षाकृत कम उपयोग की गयी हैं। देश में 1.95 लाख किलोमीटर नदियां और नहरें, 6.06 लाख हेक्टेयर खारा पानी क्षेत्र, 3.65 लाख हेक्टेयर बील और ऑक्सबो लेक, 27.56 लाख हेक्टेयर तालाब और जलाशय, तथा 31.53 लाख हेक्टेयर जलाशयों का नेटवर्क मौजूद है। यह सब भारत में सतत् अंतरदेशीय मात्स्यिकी के विकास के लिए अपार संभावनायें प्रदान करता है। भारत का अंतरदेशीय मात्स्यिकी क्षेत्र राष्ट्रीय मछली उत्पादन का आधार बन चुका है और कुल उत्पादन में 75 प्रतिशत का योगदान देता है। इस क्षेत्र में ठंडे पानी की मात्स्यिकी और प्रजातियों के विविधीकरण जैसे उपाय भी शामिल हैं, जिनमें तिलापिया और पंगासियस जैसी नयी प्रजातियां शामिल हैं।

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत, अंतरदेशीय मात्स्यिकी और जलीय कृषि (एक्वाकल्चर) की संभावनाओं का लाभ उठाने के लिए 'प्रौद्योगिकी समावेशन और अपनाने' में देशभर में 3,300 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है।

पंजाब ने पीएमएमएसवाई के अंतर्गत उल्लेखनीय प्रगति दिखायी है, जिसमें 187 करोड़ रुपये का निवेश किया गया, जिसमें केंद्रीय आवंटन 72 करोड़ रुपये शामिल है। राज्य के लिए मछली उत्पादन का लक्ष्य 2.21 लाख टन रखा गया था, जबकि 2023-24 में वास्तविक उत्पादन 1.84 लाख टन रहा। पंजाब में आधुनिक मात्स्यिकी प्रथाओं ने पिछले पांच वर्षों में मछुआरों की आय में लगभग 500 करोड़ रुपये का इजाफ़ा किया है और 2020-21 से मछली उत्पादन में 35,000 टन से अधिक की वृद्धि हुई है।

हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में बंजर भूमि का उत्पादक उपयोग सुनिश्चित करने के लिए, वित्तीय वर्ष 2024-25 में 263.80 हेक्टेयर पर खारा पानी जलीय कृषि (एक्वाकल्चर) परियोजना प्रस्ताव मंजूर किये गये, जिनका बजट 36.93 करोड़ रुपये रखा गया, जो प्रारंभिक लक्ष्य 200 हेक्टेयर से अधिक है।

मुख्य प्रगति के संकेतक के रूप में, मुक्तसर साहिब, पंजाब और सिरसा, हरियाणा में खारा पानी जलीय कृषि (एक्वाकल्चर) क्लस्टर की मंजूरी और अधिसूचना जारी की गयी है। इसके अलावा, मत्स्य पालन विभाग, भारत सरकार ने हरियाणा के सिरसा जिले, पंजाब के श्री मुक्तसर साहिब जिले और राजस्थान के चूरू जिले में खारा पानी क्लस्टर के विकास के लिए अधिसूचना जारी की है। ये पहलें पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में सतत् मात्स्यिकी विकास और ग्रामीण आजीविका सृजन में नये आयाम स्थापित करेंगी।

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