लखनऊ , नवंबर 18 -- इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने किशोर बच्चों को सेक्स स्वास्थ्य की दी जाने वाली शिक्षा के मामले में केंद्र और राज्य सरकार से मांगा गये जवाब दाखिल नहीं करने 15 हजार हर्जाने के साथ राज्य सरकार को तीन सप्ताह में बेहतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।

न्यायालय ने केंद्र सरकार की ओर से सुनवाई के समय किसी के पेश न होने और मांगा गया जवाब दाखिल न करने पर संबंधित केंद्रीय विभागों पर भी 15 हजार हर्जाना लगाया है।

अदालत ने पहले इस मामले में राज्य सरकार से पूछा था कि इसके लिए आम जागरूकता पैदा करने को क्या किया। अदालत ने इसके लिए राज्य सरकार को पूरक हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया था।

राज्य के सहायक सचिव प्रेम चंद्र कुशवाहा ने हलफनामा दाखिल किया। जिससे अदालत संतुष्ट नहीं हुयी और हलफनामा दाखिल करने वाले अफसर को 15 हजार रुपए बतौर हर्जाना जमा करने का आदेश दिया।

न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति राजीव भारती की खंडपीठ ने यह आदेश नैतिक पार्टी की ओर से विनोद कुमार सिंह व एक अन्य द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर दिया। याचिका में केंद्र सरकार की किशोरावस्था शिक्षा योजना - 2005 को पर्याप्त जागरूकता के साथ प्रदेश में लागू करने का आग्रह किया गया है। याचियों के अधिवक्ता चंद्र भूषण पांडेय का कहना था कि 10 से 18 साल की किशोरावस्था में बच्चो में कई शारीरिक और मानसिक परिवर्तन होते हैं। ऐसे में सेक्स स्वास्थ्य और प्रजनन को लेकर उनका सही मार्गदर्शन करने को केंद्र ने किशोरावस्था शिक्षा योजना - 2005 को केंद्रीय और राज्यों के स्कूलों - कालेजों में प्रभावी ढंग से लागू करने की व्यवस्था की है। इसके बावजूद प्रदेश में यह योजना प्रभावी ढंग से लागू नहीं की गई।

अधिवक्ता ने योजना को प्रदेश में समुचित तरीके से अमल में लाने के निर्देश राज्य सरकार को देने की गुजारिश की थी। अधिवक्ता ने कहा कि राज्य सरकार ने जवाब में किशोरावस्था शिक्षा योजना को स्कूल कालेजों के पाठ्यक्रम में शामिल करने पर प्रकाश डाला है। लेकिन, इसकी जागरूकता पैदा करने की चुनौतियों समाधान करने को कुछ नहीं कहा है। इस पर कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा था कि इसके लिए आम जागरूकता पैदा करने को क्या किया। कोर्ट ने मामले में आदेश देकर इसे अगली सुनवाई के लिए 15 दिसंबर से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है।

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