नयी दिल्ली , नवंबर 12 -- केंद्र सरकार ने देश में निर्यात क्षेत्र की परिस्थितियों को बेहतर और मजबूत बनाने के लिए 25,600 करोड़ रुपये के निर्यात संवर्धन मिशन (ईपीएम) को बुधवार मंजूरी दी।

इस मिशन के अंतर्गत कपड़ा, चमड़ा, रत्न एवं आभूषण, इंजीनियरिंग सामान और समुद्री उत्पाद क्षेत्र को प्राथमिकता के आधार पर सहायता प्रदान की जाएगी जो हाल में अमेरिका की आयात शुल्क संबंधी कार्रवाइयों से विशेष रूप से प्रभावित हुई है। सरकार ने कहा है कि इससे निर्यात ऑर्डरों को बनाए रखने, नौकरियों की रक्षा करने और नए भौगोलिक क्षेत्रों में विविधीकरण को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।

इस मिशन की घोषणा वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमण ने चालू वित्त वर्ष के बजट को प्रस्तुत करते हुए की थी लेकिन इसको ऐसे समय लागू करने का निर्णय किया गया है जब भारतीय निर्यात को वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जिसमें अमेरिका में भारतीय माल पर 50 प्रतिशत की दर से भारी शुल्क की चुनौती भी जुड़ गयी है।

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल के इस निर्णय की जानकारी देते हुए सूचना प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि निर्यात संवर्धन मिशन बजट 2025-26 में घोषित एक प्रमुख पहल है। इसका निर्यात बाजार में भारत के निर्यात क्षेत्र, विशेष रूप से पहली बार निर्यात करने वाले और श्रम-प्रधान सूक्ष्म, लघु और मझोल क्षेत्रों की प्रतिस्पर्धा क्षमता को मज़बूत करना है।

यह मिशन 2025-26 से 2030-31 तक चलाया जाएगा और इस पर कुल 25,060 करोड़ रुपये के बजटीय परिव्यय का प्रावधान किया जाएगा।

मंत्रिमंडल की बैठक के बाद जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) इस मिशन के लिए कार्यान्वयन एजेंसी का काम करेगा। इसमें सभी प्रक्रियाओं - आवेदन से लेकर संवितरण तक - का प्रबंधन मौजूदा व्यापार प्रणालियों के साथ एकीकृत एक समर्पित डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से किया जाएगा।

इसके तहत निर्यात संवर्धन के लिए एक व्यापक, मजबूत और डिजिटल रूप से संचालित ढाँचा प्रदान किया जाएगा। इसके तहत कई अलग-अलग योजनाओं को रणनीति के तहत एकीकृत कर उन्हें परिणाम-आधारित और समय की जरूरत के अनुसार व्यवस्थित किया जा रहा ताकि वैश्विक व्यापार चुनौतियों और निर्यातकों की उभरती ज़रूरतों का समय पर सामाधन किया जा सके।

निर्यात संवर्धन मिशन में वाणिज्य विभाग, एमएसएमई मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और वित्तीय संस्थानों, निर्यात संवर्धन परिषदों, कमोडिटी बोर्डों, उद्योग संघों और राज्य सरकारों सहित अन्य प्रमुख हितधारक शामिल किये गये हैं।

यह मिशन दो एकीकृत उप-योजनाओं के जरिये चलाया जाएगा । इसमें एक योजना निर्यात प्रोत्साहन और दूसरी निर्यात की दिशा पर केंद्रित होगी।

निर्यात प्रोत्साहन उप - योजना में निर्यात को को सस्ते कर्ज के लिए ब्याज अनुदान, निर्यात फैक्टरिंग, संपार्श्विक गारंटी, ई-कॉमर्स निर्यातकों के लिए क्रेडिट कार्ड और नए बाजारों में विविधीकरण के लिए ऋण वृद्धि सहायता जैसे विभिन्न साधनों के माध्यम से एमएसएमई के लिए किफायती व्यापार वित्त सुलभ करने के उपाय शामिल किये गये हैं।

निर्यात दिशा की उप-योजना में वित्तेतर उपाय शामिल हैं जो वैश्विक बाजार के लिए तैयारी और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने वाले हैं। इनमें निर्यात गुणवत्ता और विश्विक मानकों के अनुपालन के लिए सहायता, अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडिंग, पैकेजिंग और व्यापार मेलों में भागीदारी, निर्यात भंडारण और रसद, अंतर्देशीय परिवहन प्रतिपूर्ति, और व्यापार खुफिया एवं क्षमता निर्माण पहल शामिल हैं।

इस मिशन में ब्याज समानीकरण योजना (आईईएस) और बाजार में प्रवेश की पहल (एमएआई) जैसी दो प्रमुख निर्यात सहायता योजनाओं को समेकित किया गया है ताकि उन्हें समकालीन व्यापार आवश्यकताओं के अनुरूप बनाता है।

सरकार का कहना है कि यह मिशन भारतीय निर्यात को बाधित करने वाली संरचनात्मक चुनौतियों का सीधे समाधान करने के लिए तैयार किया गया है जिनमें निर्यातकों के सामने महंगे कर्ज ,अंतर्राष्ट्रीय निर्यात मानकों के अनुपालन की उच्च लागत, निर्यात उत्पाद की ब्रांडिंग और बाजार में सीमीत प्रवेश तथा देश के अंदर छोटे या दूर दराज के निर्यातकों के लिए लॉजिस्टिक्स संबंधी कठिनाइयां शामिल हैं।

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