पटना , अक्टूबर 18 -- नरक चतुर्दशी के अवसर पर मृत्यु के देवता यमराज और हनुमान जी की पूजा की जाती है।

दीपावली से एक दिन पहले कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। इस दिन को छोटी दिवाली, रूप चतुर्दशी और यम दीपावली के नाम से भी पहचाना जाता है। इस दिन शाम को मत्यु के देवता यमराज के नाम से दक्षिण दिशा की ओर मुख करके एक दीपक जलाने की परंपरा है।मान्यता है कि ऐसा करने से यमराज प्रसन्न होते हैं और लोगों को अकालमृत्यु के भय से छुटकारा मिलता है। ऐसा करने से पूर्वज प्रसन्न होकरअपना आशीष परिवार के सभी सदस्यों पर हमेशा बनाए रखते हैं।ऐसी मान्यता है कि इस दिन यमराज का पूजन करने तथा व्रत रखने से नरक की प्राप्ति नहीं होती। यमराज से प्रार्थना की जाती है कि उनकी कृपा से हमें नरक के भय से मुक्ति मिले।

माना जाता है कि पितृपक्ष में धरती पर आए पितृगण इस वक्त परलोक लौट रहे होते हैं और दीपक जलाने से उनका मार्ग रोशन होता है, इससे प्रसन्न होकर वे अपनी संतान को सुखी और खुशहाल रहने का आशीर्वाद देते हैं। नरक चतुर्दशी को यमराज और बजरंग बली की भी पूजा-अर्चना की जाती हैं। मान्यता है कि आज के दिन ही बजरंग बली का जन्म हुआ था।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन अर्द्धरात्रि में हनुमान जी का जन्म अंजनी माता के गर्भ से हुआ था। यही कारण है कि हर तरह के सुख,आनंद और शांति की प्राप्ति के लिए नरक चतुर्दशी को बजरंग बली की उपासना लाभकारी होती है। इस दिन शरीर पर तिल के तेल का उबटन लगाकर स्नान करते हैं और इसके बाद हनुमान की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हुए उन्हें सिंदूर चढ़ाया जाता है। इस दिन रात को तेल अथवा तिल के तेल के 14 दीपक जलाने की परम्परा है।

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