अहमदाबाद , डिसंबर 18 -- गुजरात में अहमदाबाद के मैरिंगो सिम्स होस्पिटल में ट्रायल के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर तथा न्यूरोइंटरवेंशन और स्ट्रोक के डिरेक्टर डॉ. मुकेश शर्मा ने गुरूवार को कहा कि ग्रासरूट (जीआरएएसएसआरओओटी) ट्रायल भारत में स्ट्रोक केयर के लिए एक गेम-चेंजर है।
श्री शर्मा ने कहा कि उत्कृष्ट सुरक्षा के साथ उच्च रीपरफ्यूज़न दरों का अर्थ है कि अब मरीज, विशेषकर सीमित संसाधनों की परिस्थितियों में भी, महत्वपूर्ण समय के भीतर जीवनरक्षक मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टॉमी तक पहुंच बना सकेंगे।" ग्रासरूट ट्रायल एक ऐतिहासिक मल्टीसेंटर क्लिनिकल स्टडी है, जिसमें शरीर की बड़ी रक्त वाहिकाओं में अवरोध के कारण होने वाले तीव्र इस्केमिक स्ट्रोक से पीड़ित मरीजों के लिए सुपरनोवा स्टेंट रिट्रीवर का मूल्यांकन किया गया। यह सफलता भारत की आत्मनिर्भरता और एडवान्स्ड न्यूरोवैस्कुलर केयर की दिशा में एक महत्वपूर्ण माईल स्टोन है।
इस उपलब्धि का आधार यह तथ्य है कि स्टेंट का डिज़ाइन भारतीय इंजीनियरों द्वारा किया गया है और अध्ययन देश के आठ अस्पतालों में, जिनमें मैरिंगो सिम्स (सीआईएमएस) होस्पिटल भी शामिल है। जिससे 'मेक इन इंडिया' का सपना साकार हो रहा है। ग्रासरूट ट्रायल देश के आठ प्रमुख स्ट्रोक सेंटरों में किया गया, जिसने स्वदेशी रूप से विकसित डिवाइस के लिए मज़बूत भारतीय क्लिनिकल साक्ष्य प्रदान किए हैं।
उन्होंने कहा कि यह ईन्नोवेशन अपने राष्ट्रीय महत्व के साथ यह भी स्पष्ट करता है कि भारत में निर्मित स्टेंट अब मस्तिष्क की ब्रेईन वेसल्स के लिए और एक्यूट ब्रेन स्ट्रोक के उपचार में भी उपयोगी है। सुपरनोवा स्टेंट रिट्रीवर ने सुरक्षा और प्रभावशीलता के सशक्त परिणाम दिखाए हैं। जिसमें उच्च स्तर की सफल रीकैनेलाइज़ेशन, अनुकूल फर्स्ट-पास सफलता और कम जटिलताओं के साथ 90 दिनों में बेहतर फंक्शनल रिकवरी शामिल है।
ये परिणाम वैश्विक मानकों के अनुरूप हैं और साथ ही उपलब्धता व वहन-क्षमता के बीच के महत्वपूर्ण अंतर को भी संबोधित करते हैं। भारत में स्ट्रोक मृत्यु और दीर्घकालिक विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है और मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टॉमी तक समय पर पहुंच जीवनरक्षक सिद्ध हो सकती है। इस प्रकार के स्वदेशी समाधान भारत के एक्यूट स्ट्रोक केयर इन्फ्रास्ट्रक्चर को सुदृढ़ बनाते हैं।
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