चित्रकूट , अक्टूबर 20 -- उत्तर प्रदेश के पौराणिक एवं धार्मिक तीर्थ स्थल चित्रकूट में आज दीपावली के पावन पर्व पर 25 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने मंदाकिनी नदी में डुबकी लगाकर कामदगिरि की परिक्रमा लगाई दीपदान एवं अन्नदान किया।

रामघाट परिक्रमा मार्ग के अलावा गुप्त गोदावरी, अनुसूया आश्रम, हनुमान धारा, जानकी कुंड, स्फटिक शिला में भारी संख्या में श्रद्धालुओं की मौजूदगी रही। इस दौरान शासन एवं प्रशासन की व्यवस्था चाक चौबंद रही। श्रद्धालुओं के सम्मान में लाल कारपेट पूरी परिक्रमा मार्ग पर बिछाया गया था। कामदगिरि मुख्य द्वारा के महंत स्वामी रामस्वरूप आचार्य ने यूनीवार्ता को बताया कि त्रेता युग में प्रभु श्री राम ने दुर्दांत व्यभिचार राक्षस रावण का वध करने के बाद अपनी पूरी सेना के साथ अयोध्या लौटते वक्त चित्रकूट में पुष्पक विमान से उतरकर अपने पूरी सेना के साथ मां मंदाकिनी में स्नान किया और यहां पर दीपदान किया तब से यह परंपरा अनवरत रूप से चली आ रही है।

मानस प्रवक्ता आचार्य नवलेश दीक्षित ने बताया कि चित्रकूट की महिमा बाल्मिक रामायण और तुलसीकृत राम रामचरितमानस में विभिन्न प्रकार से बताई गई है चित्रकूट की महिमा के बारे में तुलसीदास जी ने लिखा है " चित्रकूट सब दिन बसंत, प्रभु सिय लखन समेत राम नाम जप जाप कहीं तुलसी अभी मत देत। चित्रकूट में रम रहे रहिमन अवध नरेश, जा पर विपदा परत है सोई आवत यह देश।।"चित्रकूट और मंदाकिनी का बाल्मिक जी ने और तुलसीदास जी ने अपनी रामायण और रामचरितमानस में बहुत महत्ता बताई है। इसी रामघाट में तुलसीदास जी को प्रभु श्री राम मां जानकी एवं लक्ष्मण जी के सहित दर्शन का सौभाग्य मिला। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस मे तमाम सारे घटनाओं का उल्लेख किया है। तुलसीदास जी के गुरु श्री नरहरिदास जी भी चित्रकूट में वास करते थे।

नवलेश दीक्षित ने मंदाकिनी नदी का महत्व और कामदगिरि की परिक्रमा का महत्व बताते हुए कहा कि प्रत्येक श्रद्धालु को प्रभु कामतानाथ जी के नेत्रों के दर्शन अवश्य करना चाहिये। तुलसीदास जी ने अपनी रामचरितमानस में घोषणा की " चित्रकूट चिंता हरण आए सुख के चैन, पाप कटे युग कर के देख कमता नैन । कामत नाथ जी के नेत्रों के दर्शन करने से चार युगों के पाप का नाश हो जाता है।

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