चेन्नई , दिसंबर 12 -- तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली (त्रिचि) जिले के थिरुपरनकुंद्रम पहाड़ी की चोटी पर स्थित दरगाह से सटे पत्थर के स्तंभ को नीचे स्थित प्रसिद्ध मुरुगन मंदिर का 'दीपथून पिलर' बताने के दावों का खंडन करते हुए तमिलनाडु सरकार ने शुक्रवार को मद्रास उच्च न्यायालय की खंडपीठ से कहा कि यह केवल एक सर्वेक्षण स्तंभ है और वहां दीपक जलाने का कोई रिकॉर्ड नहीं है।

न्यायमूर्ति जी जयचंद्रन और केके रामकृष्णन की मदुरै पीठ के समक्ष दलीलें पेश करते हुए महाधिवक्ता पीएस रमन और वरिष्ठ वकील जी मसिलमणि ने न्यायमूर्ति जी.आर. सुब्रमण्यन के एक दिसंबर के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें पत्थर के स्तंभ पर 'कार्तिकई दीपम' जलाने का निर्देश दिया गया था और यह स्पष्ट किया कि यह दीपपथून पिलर नहीं है बल्कि एक सर्वेक्षण पत्थर है।

उन्होंने तर्क दिया कि हमेशा की तरह इस वर्ष भी उचि पिलैयार (विनायक) मंदिर में दीपक जलाया गया जो एक सदी से भी ज्यादा पुरानी प्रथा है और उन्होंने एकल न्यायाधीश के आदेश को संविधान के अनुच्छेद 226 के दायरे से बाहर बताया।

राज्य सरकार की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता ने कहा, "एकल न्यायाधीश के समक्ष ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि पत्थर का स्तंभ दीपथून है। अगर हर न्यायाधीश दीपक जलाने के लिए नयी जगह का सुझाव देने लगे तो सैकड़ों विकल्प हो जाएंगे।" उन्होंने आगे कहा कि एकल न्यायाधीश का आदेश खंडपीठ के पहले के फैसले के विपरीत है।

जब न्यायमूर्ति जयचंद्रन ने पूछा कि अगर जमीन पर मौजूद लोगों को बेहतर प्रकाश मिल सकता है तो पहाड़ी पर दीपक जलाने का स्थान बदलने में क्या गलत है, तो महाधिवक्ता ने जवाब दिया कि दशकों से चली आ रही प्रथा को बदलने का यह मापदंड नहीं हो सकता है।

उन्होंने तर्क दिया, "जब थिरुपरनकुंद्रम मंदिर के पुजारियों ने स्पष्ट कहा कि दीपक केवल उचि पिलैयार मंदिर में ही प्रज्वलित किया जाना चाहिए और मंदिर प्रबंधन ने भी यही राय दी तो रिट न्यायालय विपरीत दृष्टिकोण नहीं अपना सकता।। उन्होंने यह भी कहा कि एकल न्यायाधीश के इस विचार का कोई तथ्यात्मक आधार या सत्यापन योग्य प्रमाण नहीं है कि पत्थर के स्तंभ पर दीपक प्रज्वलित करने की परंपरा को त्याग दिया गया है।

उन्होंने कहा, "याचिकाकर्ता दीवानी मुकदमा दायर करके यह साबित कर सकता है कि तथाकथित दीपथून वास्तव में दीपथून है या नहीं और क्या उस पर कभी दीपक जलाया गया था या नहीं। हालांकि, इन मुद्दों का फैसला अनुच्छेद 226 के तहत नहीं किया जा सकता। रिट याचिकाकर्ता को पहले दीपथून के अस्तित्व और प्रथा के रूप में उस पर दीपक जलाने की आवश्यकता को साबित करना होगा।"महाधिवक्ता रमन ने याचिका को जनहित याचिका नहीं बल्कि निजी हित याचिका बताते हुए खारिज कर दिया। उन्होंने 1920 से लेकर अब तक के कई पिछले फैसलों का हवाला देते हुए, जिनमें 1923 में प्रिवी काउंसिल का एक फैसला भी शामिल है, महाधिवक्ता ने कहा कि कहीं भी दीपथून का उल्लेख नहीं किया गया है।

मंदिर के कार्यकारी अधिकारी (ईओ) का प्रतिनिधित्व करते हुए, वरिष्ठ वकील मसिलमणि ने छोटे दीपक जलाने और बड़े दीपम जलाने के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए कहा कि सर्वेक्षण स्तंभ पर दीपम नहीं जलाया जा सकता, जिसे दीपम-मंडप बताया जा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि याचिकाकर्ता की याचिका में दीपम-मंडप का उल्लेख है, लेकिन उचि पिलैयार मंदिर के अलावा इस पत्थर के स्तंभ पर कोई दीपम-मंडप नहीं है।

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