नैनीताल , अक्टूबर 17 -- उत्तराखंड के नैनीताल जिले के रामनगर के पास स्थित कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व इन दिनों 'हाई अलर्ट मोड' पर है। दिवाली के मौके पर जंगल में उल्लुओं के शिकार की आशंका को देखते हुए प्रशासन ने सतर्कता बढ़ा दी है। पार्क प्रबंधन ने सभी फील्ड कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द कर दी हैं और रात्रिकालीन गश्त को तेज कर दिया गया है।

दरअसल तांत्रिक गतिविधियों और अंधविश्वास के चलते हर साल दिवाली के समय उल्लुओं का शिकार बढ़ जाता है। माना जाता है कि लक्ष्मी पूजा के दौरान उल्लू, जो देवी लक्ष्मी का वाहन है, की बलि देने से धन और समृद्धि प्राप्त होती है। इसी भ्रामक धारणा के चलते देशभर के कई इलाकों में उल्लुओं की तस्करी और हत्या के मामले सामने आते हैं।

कॉर्बेट प्रशासन ने बताया कि यह न केवल वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन है बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी बेहद खतरनाक है। उल्लू पर्यावरण में कृंतक नियंत्रण और संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं।

इसी को देखते हुए कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में जंगल के हर जोन बिजरानी, ढिकाला, झिरना, ढेला और दुर्गा देवी में विशेष गश्त की जा रही है। खासकर कॉर्बेट की दक्षिणी सीमा जो उत्तर प्रदेश से लगती है, वहां पर भी कड़ी निगरानी रखी जा रही है,इस मुहिम में उत्तर प्रदेश वन विभाग भी कॉर्बेट प्रशासन के साथ मिलकर अभियान चला रहा है. वहीं मामले में वन्यजीव प्रेमी छिम्वाल कहते है हर साल दिवाली के दौरान उल्लुओं के शिकार की कोशिशें होती हैं,यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोग अंधविश्वास के कारण ऐसे निर्दोष पक्षियों की जान ले लेते हैं।

वहीं मामले में कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व के एसडीओ अमित ग्वासाकोटी ने बताया कि दिवाली के दौरान उल्लू शिकार की संभावनाओं को देखते हुए हमने पूरी टीम को अलर्ट किया है। सभी कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द करते हुए गश्त बढ़ाई गई है और सीमा क्षेत्रों में विशेष निगरानी रखी जा रही है।

श्री ग्वासाकोटी ने कहा,"हमारा उद्देश्य है कि किसी भी स्थिति में वन्यजीवों को नुकसान न पहुंचे। कॉर्बेट प्रशासन ने लोगों से अपील की है कि यदि किसी को उल्लू या अन्य वन्यजीवों के अवैध शिकार की जानकारी मिलती है तो तुरंत वन विभाग को सूचित करें।"गौरतलब है कि जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान भारत का सबसे पुराना राष्ट्रीय पार्क है और 1936 में लुप्तप्राय बंगाल बाघ की रक्षा के लिए हैंली नेशनल पार्क के रूप में स्थापित किया गया था। इसका नाम जिम कॉर्बेट के नाम पर रखा गया था जिन्होंने इसकी स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

बाघ परियोजना पहल के तहत आने वाला यह पहला पार्क था। यह एक गौरवशाली पशु विहार है। यह रामगंगा की पातलीदून घाटी में 1318.54 वर्ग किलोमीटर में बसा हुआ है जिसके अंतर्गत 821.99 वर्ग किलोमीटर का जिम कॉर्बेट व्याघ्र संरक्षित क्षेत्र भी आता है। पार्क में उप-हिमालयन बेल्ट की भौगोलिक और पारिस्थितिक विशेषताएं हैं। यह एक इकोटोरिज़्म गंतव्य भी है और यहाँ पौधों की 488 प्रजातियां और जीवों की एक विविधता है।

पर्यटन की गतिविधियों में वृद्धि और अन्य समस्याएं पार्क के पारिस्थितिक संतुलन के लिए एक गंभीर चुनौती पेश कर रहीं हैं। कॉर्बेट एक लंबे समय के लिए पर्यटकों और वन्यजीव प्रेमियों के लिए अड्डा भी रहा है। कोर्बेट टाइगर रिजर्व के चयनित क्षेत्रों में ही पर्यटन गतिविधि को अनुमति दी जाती है ताकि लोगों को इसके शानदार परिदृश्य और विविध वन्यजीव देखने का मौका मिले। हाल के वर्षों में यहां आने वाले लोगों की संख्या में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है।

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