नयी दिल्ली , 12 दिसंबर (वार्ता) राज्य सभा में मनोनीत सदस्या सुधा मूर्ति ने शुक्रवार को एक गैर सरकारी संकल्प प्रस्तुत कर बच्चे के स्वस्थ विकास के लिए पूरे देश में तीन से 14 वर्ष तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा और पोषण उपलब्ध कराने के लिए कानूनी और अन्य आवश्यक प्रावधान करने का प्रस्ताव रखा।
चर्चा के दौरान सदस्यों ने देश में विकसित मानव संसाधन को विकसित भारत की बुनियाद बताते हुए कहा कि छोटे बच्चों के मानसिक शारीरिक विकास पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है। चर्चा में इस बात का उल्लेख किया गया है कि नयी शिक्षा नीति में छोटे बच्चों की शिक्षा के महत्च को पहली बार समझा गया है पर सरकारी बजट नगण्य और इसका गरीबों के बच्चों को सबसे अधिक नुकसान होता है।
श्रीमती मूर्ति ने कहा कि बच्चों के मस्तिष्क का 85 प्रतिशत विकास 3 से 6 वर्ष के बीच होता है इस लिए छोटी आयु में शिक्षा और स्वास्थ्य का ध्यान देना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने आंगनबाड़ी शिक्षिकाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया पर कहा कि इसकी पहुंच कम है और इसके लिए संसाधनों की भी कमी दिखती है। उन्होंने इस मामले में सरकार और समाज की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि इस काम में कंपनियों के सामाजिक दायित्व कोष (सीआरएस) का भी उपयोग किया जा सकता है।
श्रीमति मूर्ति ने प्रस्ताव रखते हुए कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21ए छह से चौदह वर्ष की आयु के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी देता है, और संविधान (छियासीवां संशोधन) अधिनियम, 2002 ने एक निर्देशक सिद्धांत पेश किया जो राज्य को छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
उन्होंने कहा कि प्रारंभिक बचपन, जन्म से छह वर्ष तक, एक महत्वपूर्ण विकासात्मक अवधि है, जिसके दौरान 85 प्रतिशत से अधिक मस्तिष्क का विकास होता है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में भी इस बात का उल्लेख किया गया है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 भी 2030 तक सार्वभौमिक, उच्च-गुणवत्ता वाली प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा (ईसीसीई) की सिफारिश करती है और बेहतर दीर्घकालिक सीखने और कल्याण के लिए इस कार्यक्रम में अच्छे निवेश के महत्व पर जोर देती है।---------वैज्ञानिक और विकासात्मक अनुसंधान इंगित करता है कि संरचित प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा तक पहुंच वाले बच्चे बेहतर स्वास्थ्य, पोषण, सीखने के परिणाम और आजीवन कमाई प्रदर्शित करते हैं। उच्च-गुणवत्ता वाली, सुरक्षित और सुलभ बाल देखभाल की उपलब्धता माताओं, भाई-बहनों और दादा-दादी को अधिक उत्पादक आर्थिक गतिविधि में शामिल होने की अनुमति देती है, जिससे घरेलू आय में वृद्धि होती है और महिला श्रम बल भागीदारी बढ़ती है।
उन्होंने कहा कि आंगनवाड़ी व्यवस्था में विकलांगता और विकासात्मक देरी के लिए सभी बच्चों की स्क्रीनिंग प्रारंभिक निदान और हस्तक्षेप, प्रारंभिक सीखने में समावेशी प्रथाओं, और चिकित्सा और विकलांगता विशेषज्ञों को समय पर रेफरल की सुविधा प्रदान करती है, जिससे आजीवन विकलांगता के कलंक को दूर करने और संभावित रोकथाम में योगदान मिलता है। ईसीसीई भूख और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के संयुक्त राष्ट्र के स्वस्थ्य विकास के लक्ष्यों के अनुरूप है।
उन्होंने इस वर्ष समन्वित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) और आंगनवाड़ी प्रणाली की स्वर्ण जयंती होने का उल्लेख करते हुए यह संकल्प रखा कि ' सदन संविधान में संशोधन करके एक नया अनुच्छेद 21बी जोड़ने पर विचार करे जो तीन से छह साल की उम्र के सभी बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शुरुआती बचपन की देखभाल और शिक्षा की गारंटी दे।"इस संकल्प में छोटे बच्चों के पोषण, स्वास्थ्य सेवाएं और प्री-प्राइमरी लर्निंग की पर्याप्त सुविधाएं शामिल किये जाने का भी संकल्प है।
प्रस्ताव का समर्थन करते हुए डीएमके के पी विल्सन ने कहा कि 12वीं तक की शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए। आम आदमी पार्टी (आप) की स्वाति मालीवाल ने श्रीमती मूर्ति के संकल्प का पुरजोर समर्थन करते हुए जापान और फिनलैंड माडल के शिक्षा माडल का उल्लेख किया तथा कहा कि दुनिया के सबसे ज्यादा विकसित देश अपने बच्चों की शिक्षा, मानसिक विकास और स्वाथ्य पर बड़ा निवेश करते हैं।
सुश्री मालीवाल ने इस दिशा में प्रारंभिक बचपन की शिक्षा के लिए राष्ट्रीय मिशन शुरू करने और देश में खेल-कूद को अभियान के रूप में शुरू किये जाने का सुझाव दिया। बीजेडी के डॉ सस्मित पात्रा ने प्रारंभिक बचपन की शिक्षा के लिए संविधान की धारा 21 बी में संशोधन के प्रस्ताव का समर्थन किया और आंगनवाड़ी कार्यक्रम को और मजबूत बनाने की जरूरत को रेखांकित किया।
बीजद के सस्मित पात्रा ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 45 में बच्चों की प्राथमिक शिक्षा और पोषण का प्रावधान किया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी बच्चों की प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाया गया है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 बी को वास्तविक रूप में पूरी तरह क्रियान्वित किये जाने की जरूरत है।
सीपीआई (एम ) के जॉन ब्रिटास ने कहा कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को उनके काम के अनुपात में मानदेय नहीं दिया जा रहा है और इसे बढाये जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आंगनवाड़ी योजना के 50 वर्ष हो गये हैं और इस अवसर पर इसमें काम करने वाली कार्यकर्ताओं का मानदेय बढाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्हें सम्मान देने के लिए उन्हें सरकारी कर्मचारी भी बनाया जाना चाहिए।
सपा के जावेद अली खान ने कहा कि उत्तर प्रदेश में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की हालत बहुत बुरी है। उन्हें मानदेय के नाम पर केवल छह हजार रूपये दिये जाते हैं जिसमें 4500 केन्द्र तथा 1500 राज्य सरकार की ओर से दिये जाते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार आंगनवाड़ी केन्द्रों के किराये के लिए मात्र 750 रूपये देती है। इससे आंगनवाड़ी केन्द्रों के लिए अच्छी जगह नहीं मिल पा रही है।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) की फौजिया खान ने कहा कि हर बच्चे को पोषण और प्रारंभिक शिक्षा दिया जाना सरकार का संवैधानिक तथा नैतिक दायित्व है । राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिए भी यह बेहद जरूरी है।
भाजपा के मयंक कुमार नायक , आम आदमी पार्टी के राजेंद्र गुप्ता ने भी आंगनवाड़ी कार्यक्रम की सराहना की। श्री गुप्ता ने कहा कि 1975 में मात्र कुछ गिनी चुनी पायलट परियोजनाओं के साथ शुरू हुआ भारत का आंगनवाड़ी कार्यक्रम आज दुनिया में प्राथमिक पाठशाला पूर्व शिक्षा का बससे बड़ी कार्यक्रम बन गया है।
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