पणजी , नवंबर 23 -- बॉलीवुड के जानेमाने फिल्मकार शेखर कपूर का कहना है कि तकनीक कहानीकार को नया रूप नहीं देती, बल्कि कहानीकार तकनीक को नया रूप देता है।
56वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) में 'यूरेशियन महोत्सव की एक सीमा: क्या हमें आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (एआई) की दुनिया में सिनेमा को नए सिरे से परिभाषित करने की ज़रूरत है?'शीर्षक वाले संवाद सत्र में दुनिया की दो सबसे प्रतिष्ठित हस्तियाँ एक साथ मंच पर आईं, जिनमें से एक थीं बर्लिन अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की महोत्सव निदेशक ट्रिशिया टटल और दूसरे थे आईएफएफआई के महोत्सव निदेशक शेखर कपूर।
पूरे सत्र के दौरान, शेखर कपूर ने कई बार इस बात पर ज़ोर दिया कि चाहे कोई भी तकनीक आ जाए, चाहे डिजिटल उपकरण या एआई से कितना ही आधुनिकीकरण क्यूं ना हो जाए, मानवीय कल्पना के जीवित होने से सिनेमा हमेशा ज़िंदा रहता है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि किसी भी नई कला का निर्देशन अंततः निर्माता ही करता है, और दर्शकों को याद दिलाता है कि कोई भी नवाचार उसका उपयोग करने वालों की रचनात्मकता से आगे नहीं बढ़ सकता।
ट्रिशिया टटल ने तकनीकी बदलावों को लेकर पहले की चिंताओं पर बात की और याद दिलाया कि कैसे डिजिटल फिल्म निर्माण के आने से, एक बार सिनेमा के लुप्त हो जाने की आशंकाएँ जगा दी थीं। लेकिन उन्होंने साथ में कहा कि,"लेकिन जो एक चीज़ टिकती है, वह है विचार, शिल्प कौशल और मानवता।"शेखर कपूर ने कहा कि एआई चाहे कितना भी उन्नत क्यों न हो जाए, वह उन नाज़ुक भावनात्मक बारीक बदलावों को नहीं समझ सकता, जो एक महान अभिनेता सिनेमाई फ्रेम में लाता है, खासकर सिर्फ आँखों में दिखने वाले हाव भाव। उन्होंने कहा, एआई इंसानी पुतलियों को नहीं समझता,"और भावनात्मक चिंगारी ही दर्शकों को कहानी से असल में बांधती है।
शेखर कपूर ने अपनी एआई-निर्मित सीरीज़, "वॉर लॉर्ड" का एक टीज़र भी साझा किया, जिसमें उन्होंने नए रचनात्मक साधनों की खोज करने वाले व्यक्ति के उत्साह की बात की। इन नई संभावनाओं को अपनाते हुए भी, उन्होंने बातचीत को अपने इस विश्वास पर आधारित किया कि तकनीक कहानीकार को नया रूप नहीं देती,बल्कि कहानीकार तकनीक को नया रूप देता है।
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