नयी दिल्ली, सितंबर 29 -- विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) और उद्योग महासंघ फिक्की द्वारा सोमवार को संयुक्त रूप से आयोजित कार्यशाला में वैज्ञानिकों ने निजी क्षेत्र द्वारा अनुसंधान एवं विकास पर व्यय बढ़ाने की जरूरत को रेखांकित किया।

कार्यशाला का आयोजन विज्ञान एवं प्रौद्योगिक (एसएंडटी) गतिविधियों के लिए संसाधन सर्वेक्षण पर विचार-विमर्श था। डीएसटी के राष्ट्रीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी और प्रबंधन सूचना प्रणाली (एनएसटीएमआईएस) के सलाहकार और प्रमुख डॉ. अरविंद कुमार ने औद्योगिक संगठनों से सक्रिय रूप से डेटा साझा करने का आह्वान किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि ज्यादा से ज्यादा प्रतिक्रिया और डेटा की सच्चाई सर्वेक्षण की सफलता के लिए महत्वपूर्ण हैं।

उन्होंने बताया, "विकसित अर्थव्यवस्थाओं में सकल अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) व्यय में कॉर्पोरेट क्षेत्र 70-75 प्रतिशत का योगदान देता है, जबकि भारत में यह आंकड़ा लगभग 36.5 प्रतिशत है।"उन्होंने कहा कि देश का वर्तमान आरएंडडी निवेश सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 0.64 प्रतिशत है, हालांकि आरएंडडी व्यय और जीडीपी लगातार बढ़ रहा है। देश का सकल अनुसंधान एवं विकास व्यय (जीईआरडी) वित्त वर्ष 2010-11 में 60,196.8 करोड़ रुपये था जो बढ़कर वित्त वर्ष 2020-21 में 1,27,381 करोड़ रुपये हो गया है।

डॉ. कुमार ने निजी क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्साहित करने वाली प्रमुख सरकारी पहलों का उल्लेख किया। इनमें एक लाख करोड़ रुपये का प्रस्तावित अनुसंधान, विकास एवं नवाचार (आरडीआई) फंड शामिल है, जो ऊर्जा परिवर्तन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, रोबोटिक्स, क्वांटम कंप्यूटिंग, जैव-विनिर्माण, चिकित्सा उपकरण और डिजिटल कृषि जैसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में वाणिज्यिक आरएंडडी और नवाचार में लगे कॉर्पोरेट्स और स्टार्टअप्स को दीर्घकालिक रियायती वित्तपोषण प्रदान करेगा।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के डीएसआईआर (औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास संवर्धन कार्यक्रम) के प्रमुख विनय कुमार ने औद्योगिक आरएंडडी को बढ़ावा देने के लिए सरकार के सतत प्रयासों की समीक्षा की। उन्होंने बताया कि देश में तीन लाख से अधिक पंजीकृत इकाइयां हैं, लेकिन सीएमआईई डेटाबेस में वर्तमान में केवल 40,000 इकाइयां ही शामिल हैं। उनमें लगभग 19,000 सार्वजनिक और 21,000 निजी उद्यम हैं। उन्होंने उद्योग हितधारकों से डेटा प्रस्तुति को राष्ट्रीय जिम्मेदारी मानने का आग्रह किया।

यूनेस्को सांख्यिकी संस्थान (नयी दिल्ली) के क्षेत्रीय सांख्यिकीय सलाहकार, शैलेंद्र सिग्देल ने विकासशील देशों में डेटा संग्रह की संरचनात्मक चुनौतियों को रेखांकित किया। उन्होंने डेटा प्रदाताओं के लिए ठोस प्रोत्साहन और फ्रास्काटी मैनुअल जैसे अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का पालन करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने चेतावनी दी कि खराब इनपुट डेटा गुणवत्ता कमजोर परिणाम देती है।

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