दुमका , दिसंबर 13 -- झारखंड के मुख्य न्यायाधीश तारलोक सिंह चौहान ने शनिवार को दुमका के कन्वेंशन सेंटर में आयोजित राज्यस्तरीय विधिक सेवा सह सशक्तिकरण शिविर और राष्ट्रीय लोक अदालत कार्यक्रम का विधिवत शुभारम्भ किया।
मुख्य न्यायाधीश श्री चौहान ने कहा है कि न्याय केवल न्यायालयों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि आम नागरिकों के जीवन में उसकी अनुभूति होनी चाहिए।
झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकार (झालसा), जिला विधिक सेवा प्राधिकार डालसा और जिला प्रशासन के संयुक्त तत्वावधान में में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान के साथ विशिष्ठ अतिथि झारखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एवं झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण(झालसा), रांची के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद, झारखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एवं उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति(एचसीएलएससी) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आनंदा सेन और दुमका न्यायमंडल के प्रशासनिक न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रदीप कुमार श्रीवास्तव शामिल हुए तथा राज्य के विभिन्न जिले में चल रहे राष्ट्रीय लोक अदालत का वर्चुअल रूप से ऑनलाइन उद्घाटन किया।
मुख्य न्यायाधीश ने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि न्याय केवल न्यायालयों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि आम नागरिकों के जीवन में उसकी अनुभूति होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि विधिक सेवा एवं सशक्तिकरण शिविरों के माध्यम से न्यायपालिका समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचने का प्रयास कर रही है, जिससे प्रत्येक नागरिक को समानता, गरिमा और न्याय तक सरल पहुँच सुनिश्चित हो सके। उन्होंने कहा कि लोक अदालत, विधिक सहायता और सुलह-समझौते जैसे मंच विवादों के समाधान के साथ-साथ सामाजिक सौहार्द और आपसी विश्वास को भी मजबूत करते हैं। ऐसे प्रयास न्याय को संघर्षपूर्ण नहीं, बल्कि सहयोगात्मक बनाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि विधिक सेवाएँ अब केवल निःशुल्क कानूनी सहायता तक सीमित नहीं रहकर नागरिकों के समग्र सशक्तिकरण का माध्यम बन चुकी हैं।
कार्यक्रम के दौरान विभिन्न विभागों द्वारा लगाए गए स्टॉलों के माध्यम से लाभुकों को विधिक जागरूकता, सरकारी कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी एवं मौके पर ही कई सुविधाएँ उपलब्ध कराई गईं है। सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, पहचान पत्र, आजीविका एवं अन्य योजनाओं से संबंधित सेवाएँ एक ही मंच पर उपलब्ध कराई गईं, जिससे लाभुकों को सीधा लाभ मिला।
मुख्य न्यायाधीश ने विधिक सहायता क्लीनिक द्वारा प्रस्तुत लघु फिल्म की सराहना करते हुए कहा कि इस प्रकार की रचनात्मक पहलें आम नागरिकों की समस्याओं, संघर्षों और आकांक्षाओं को प्रभावी ढंग से सामने लाती हैं तथा विधिक जागरूकता बढ़ाने में सहायक होती हैं। उन्होंने जिला प्रशासन, न्यायिक पदाधिकारियों, पैनल अधिवक्ताओं, पैरा लीगल वॉलंटियर्स एवं विभिन्न विभागों के पदाधिकारियों की सक्रिय सहभागिता के साथ जिला प्रशासन की ओर से केंद्र एवं राज्य सरकार की योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन के मद्धेनजर किए जा रहे प्रयासों की भी सराहना की ।
उन्होंने कहा कि न्याय तभी सार्थक है। जब वह आम जनजीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाए। उन्होंने सभी संबंधित संस्थाओं से आह्वान किया कि वे आपसी समन्वय और संवेदनशीलता के साथ कार्य करते हुए न्याय को प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचाने का संकल्प लें।
इस मौके पर झारखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एवं झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (झालसा) के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद ने अपने संबोधन में कहा कि आज भी समाज में अंधविश्वास के कारण महिलाओं एवं कमजोर वर्गों को डायन बताकर हिंसा का शिकार बनाया जाता है, जो अत्यंत निंदनीय और दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि डायन नाम की कोई चीज नहीं होती, यह केवल अज्ञानता और भ्रम का परिणाम है।
उन्होंने कहा कि इस तरह की कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए समाज के प्रत्येक व्यक्ति को जागरूक होने की आवश्यकता है। उन्होंने उपस्थित लोगों से अपने आसपास के लोगों को भी जागरूक करने, उन्हें कानून की जानकारी देने के साथ अंधविश्वास के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये आगे आने की अपील करते हुए कहा कि सरकार द्वारा समाज के कल्याण के लिए अनेक योजनाएं संचालित की जा रही हैं, जिनका लाभ लेना प्रत्येक नागरिकों का अधिकार है। इन योजनाओं की सही जानकारी आम लोगों तक पहुंचाना हम सभी की जिम्मेदारी है, ताकि जरूरतमंद व्यक्ति बिना किसी भय या भेदभाव के अपने अधिकारों का लाभ उठा सकें।
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