रायपुर , दिसंबर 23 -- हिंदी साहित्य के प्रख्यात रचनाकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार को रायपुर एम्स में निधन हो गया। वह 89 वर्ष के थे।
श्री शुक्ल लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। सांस लेने में तकलीफ के कारण उन्हें दो दिसंबर को एम्स में भर्ती कराया गया था, जहां वेंटिलेटर पर ऑक्सीजन सपोर्ट के दौरान उन्होंने आज शाम को अंतिम सांस ली।
श्री शुक्ल का जन्म एक जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में हुआ था। उन्होंने अध्यापन को आजीविका के रूप में अपनाते हुए अपना संपूर्ण जीवन साहित्य सृजन को समर्पित किया। सादगी, मौलिकता और गहरी संवेदनशीलता उनके लेखन की पहचान रही।
हिंदी साहित्य में उनके असाधारण योगदान के लिए वर्ष 2024 में उन्हें 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। वे इस प्रतिष्ठित सम्मान से सम्मानित होने वाले हिंदी के 12वें साहित्यकार और छत्तीसगढ़ के पहले लेखक थे।
श्री शुक्ल कवि, कथाकार और उपन्यासकार के रूप में समान रूप से प्रतिष्ठित रहे। उनकी पहली कविता 'लगभग जयहिंद' वर्ष 1971 में प्रकाशित हुई। उपन्यास 'नौकर की कमीज', 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' और 'खिलेगा तो देखेंगे' को हिंदी साहित्य की महत्वपूर्ण कृतियों में गिना जाता है। 'नौकर की कमीज' पर प्रसिद्ध फिल्मकार मणिकौल द्वारा इसी नाम से फिल्म भी बनाई गई थी। वहीं 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' को साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया।
उनका लेखन प्रयोगधर्मी होने के साथ-साथ मानवीय संवेदनाओं और मध्यवर्गीय जीवन की सूक्ष्म परतों को बेहद सहज भाषा में अभिव्यक्त करता है। श्री शुक्ल के उपन्यासों ने लोकजीवन और आधुनिक मनुष्य की जटिल भावनाओं को एक साथ पिरोते हुए हिंदी उपन्यास को नई दृष्टि दी। उनकी रचनाओं ने भारतीय कथा-साहित्य को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी विशिष्ट भाषिक संरचना और गहन भावात्मक दृष्टि ने आलोचना की नई समझ विकसित करने की प्रेरणा दी।
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