हरिद्वार , अक्टूबर 29 -- पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य बालकृष्ण ने कहा है कि जैव विविधता कृषि प्रणाली की सफलता की कुंजी है।

आचार्य बालकृष्ण 'स्वस्थ धरा' योजना के अंतर्गत मृदा स्वास्थ्य परीक्षण एवं प्रबंधन द्वारा गुणवत्तापूर्ण जड़ी-बूटियों की सतत खेती पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि कृषि में अत्याधिक रसायनों के प्रयोग से धरती पीड़ित है और भविष्य में इसके दुष्प्रभाव जैव विविधता और मानव स्वास्थ्य पर पड़ेंगे। उन्होंने कृत्रिम खेती के स्थान पर जैविक खेती अपनाने का आग्रह किया।

पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन एवं पतंजलि विश्वविद्यालय के सहयोग से विश्वविद्यालय के सभागार में मंगलवार को संपन्न हुए इस कार्यक्रम का आयोजन केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय और पतंजलि ऑर्गेनिक रिसर्च इंस्टिट्यूट के तत्वावधान में राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के सहयोग से आयोजित किया गया था। इसमें भरुवा एग्री साइंस ने भी सहयोग किया।

कार्यक्रम का उद्देश्य स्वस्थ पृथ्वी, स्थायी कृषि, दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देना और इसे वैश्विक स्तर पर मजबूत करना था। इसमें राष्ट्रीय और क्षेत्रीय किसान, शोधकर्ता, कृषि विशेषज्ञ और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ शामिल हुए, जिन्होंने मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन और मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने के तकनीकी उपायों पर चर्चा की।

नाबार्ड के अध्यक्ष और कार्यक्रम में मुख्य अतिथि शाजी केवी ने पतंजलि के साथ सहयोग को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा, ''नाबार्ड का उद्देश्य देश में स्थायी कृषि और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने के लिए ऋण उपलब्ध कराना है और यह सहयोग सृजनात्मक कार्य को प्रभावी ढंग से संचालित कर सकता है।'' उन्होंने विकसित भारत 2047 के लक्ष्य को साकार करने के लिए कृषि क्षेत्र को महत्त्वपूर्ण बताया और मोनोकल्चर कृषि के कारण मिट्टी की उर्वरता में कमी और जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव की ओर भी ध्यान आकर्षित किया।

कार्यक्रम को अपने संदेश पतंजलि के प्रमुख एवं योग गुरु स्वामी रामदेव ने कहा कि फूड प्रोसेसिंग में पतंजलि की बड़ी भागीदारी है। आंवला एलोवेरा, अनाज और तिलहन उत्पादन में पतंजलि अग्रणी है। संस्था प्रकृति, पर्यावरण और धरती के संरक्षण हेतु समर्पित है तथा बायो कंपोस्ट और आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों पर निरंतर अनुसंधान कर रही है। भारत सरकार के सहयोग से पतंजलि ने 80,000 से अधिक लोगों को प्रशिक्षित किया है।

कार्यक्रम में कहा गया कि डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से हमारे किसान मृदा परीक्षण, मिट्टी प्रबंधन, फसल नियोजन, सिंचाई और कीट नियंत्रण में सुधार कर सकते हैं। वक्ताओं ने तकनीकी समन्वय से स्वस्थ कृषि को बढ़ावा देने और संबंधित चुनौतियों के समाधान पर विशेष बल दिया।

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