भुवनेश्वर , दिसंबर 25 -- लुप्तप्राय जैतूनी रिडले समुद्री कछुओं के व्यवहार और प्रवास का पैटर्न अभी भी वैज्ञानिक अध्ययन के क्षेत्र में रहस्यमय बना हुआ है और इन कछुओं के सामूहिक अंडा देने और सेने की प्रक्रिया से पहले ओडिशा वन विभाग ने इनकी सैटेलाइट टैगिंग फिर से शुरू की है।

दुनिया के सबसे छोटे और सबसे आम समुद्री कछुओं में से एक जैतूनी रिडले है, जो सामूहिक रूप से अंडै देने और सेने (अरिबाडा) की प्रक्रिया की अपनी अनूठी घटना के लिए प्रसिद्ध है।

ये कछुए हर साल लाखों-करोड़ों की संख्या में ओडिशा तट पर सामूहिक रूप से अंडा देने और उन्हें सेने (अरिबाडा) के लिए आते हैं। केन्द्रापड़ा जिले में बंगाल की खाड़ी तट से सटे गहिरमाथा बीच को संयोगवश इन जीवों की विश्व की सबसे बड़ी ज्ञात अंडे देने की जगह माना जाता है। गहिरमाथा के अलावा ये खतरे में पड़े जलजीव रुशिकुल्या नदी मुहाने और देवी नदी मुहाने पर भी अरिबाडा के लिए आते हैं।

टैगिंग कार्यक्रम 21 दिसंबर से तीन दिनों तक चला और गहिरमाथा में छह कछुओं पर सैटेलाइट टैग लगाए गए। बाद में रुशिकुल्या नदी मुहाने पर तीन और कछुओं पर टैग लगाए जाएंगे।

वरिष्ठ वन अधिकारियों ने कहा, यह टैगिंग कार्यक्रम तट के निकट गति पैटर्न की महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने की उम्मीद है और इससे सरकार को कछुओं के संरक्षण तथा स्थानीय मछुआरा समुदायों सहित सभी हितधारकों के हित के लिए नीतियां बनाने में मदद मिलेगी।

अधिकारियों ने आगे कहा, जैतूनी रिडले कछुओं की गति पैटर्न के बारे में अधिक जानने की जरूरत है ताकि महत्वपूर्ण आवासों की पहचान की जा सके, मछली के जाल में इनके फंसने जैसे खतरों को कम किया जा सके। इन कछुओं की व्यापक गति को ध्यान में रखते हुए प्रभावी समुद्री संरक्षित क्षेत्र (एमपीए) डिजाइन किए जा सकें, उनके जीवन चक्र (भोजन, प्रजनन) को समझा जा सके और तटीय विकास तथा प्लास्टिक प्रदूषण जैसी मानवीय गतिविधियों से उनकी रक्षा के लिए नीतियां बनाई जा सकें। खासकर इसलिए क्योंकि इनकी प्रकृति अत्यधिक प्रवास की है और ये विशाल और अक्सर अंतरराष्ट्रीय समुद्री क्षेत्रों का उपयोग करते हैं।

ओडिशा ने जैतूनी रिडले समुद्री कछुओं के संरक्षण में देश का नेतृत्व किया है। ओडिशा में कछुओं पर सैटेलाइट टेलीमेट्री अध्ययन की शुरुआत 2001 के प्रारंभ में हुई थी, जो तट-आधारित निगरानी से समुद्र-स्तरीय पारिस्थितिक अनुसंधान की ओर एक महत्वपूर्ण प्रगति थी, जिससे लंबी दूरी की गति पैटर्न का पता चला। ये अध्ययन वन्यजीव संस्थान भारत (वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया) द्वारा ओडिशा वन विभाग के सहयोग से किए गए थे।

वर्ष 2024 में, ओडिशा के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति के निर्णयों के अनुसार, ओडिशा तट पर जैतूनी रिडले समुद्री कछुओं पर सैटेलाइट टेलीमेट्री कार्यक्रम को फिर से शुरू करने का फैसला लिया गया, ताकि तट के निकट गति पैटर्न और बीच की गतिशीलता का पता लगाया जा सके।

ओडिशा के पीसीसीएफ (वन्यजीव) एवं मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक, देहरादून स्थित वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया तथा धामरा पोर्ट कंपनी लि. (डीपीसीएल) के बीच हुए त्रिपक्षीय समझौते के अनुसार, गति एवं अंडे देने के आवास की गतिशीलता का अध्ययन करने के लिए दो कछुओं पर सैटेलाइट टैग लगाए गए थे।

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