नयी दिल्ली , अक्टूबर 16 -- पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दे अब केवल पर्यावरणीय चिंता नहीं रह गये है, बल्कि इनसे निपटने के लिये अपनायी जाने वाली नीतियां मानवाधिकारों के लिये एक अनिवार्य आवश्यकता बनती जा रही हैं।

श्री कोविंद ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के 32वें स्थापना दिवस और जेल में बंद कैदियों के मानवाधिकारों पर राष्ट्रीय सम्मेलन में आज अपने संबोधन में कहा कि तेज़ी से हो रहे तकनीकी और पर्यावरणीय बदलाव मानवाधिकारों के लिए नयी चुनौतियाँ पैदा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आर्थिक प्रगति हमेशा मानवीय गरिमा के साथ-साथ चलनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन अब केवल एक पर्यावरणीय चिंता नहीं रह गया है, बल्कि इनसे निपटने की नीतियां अब मानवाधिकारों के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता बनती जा रही है। उन्होंने कहा कि भारत की प्रगति को केवल आर्थिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि इस बात से भी मापा जाना चाहिए कि वह अपने सबसे कमज़ोर नागरिकों की गरिमा और कल्याण को कैसे बनाए रखता है। भारत ने मानवाधिकारों की रक्षा के लिए एक मजबूत संवैधानिक और संस्थागत ढांचा तैयार किया है।

श्री कोविंद ने कहा कि मानवाधिकार केवल वैधानिक अधिकार नहीं हैं, बल्कि एक गहरी नैतिक और सभ्यतागत चेतना की अभिव्यक्ति हैं। धर्म, करुणा और न्याय के आदर्शों में निहित भारत की सांस्कृतिक विरासत, मानवीय गरिमा के प्रति उसके दृष्टिकोण का मार्गदर्शन करती रहती है। आयोग ने पिछले तीन दशकों में हिरासत में न्याय, बंधुआ मजदूरी, तस्करी और महिलाओं, बच्चों और विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों के लिए जो सराहनीय प्रयास किये हैं उन्होंने अमिट छाप छोड़ी है।

उन्होंने कहा कि हिरासत में व्यक्तियों के साथ किसी भी प्रकार की हिंसा या अमानवीय व्यवहार हमारे संवैधानिक और नैतिक मूल्यों के विरुद्ध है। उन्होंने जेल अधिकारियों से लैंगिक-संवेदनशील और बच्चों के अनुकूल व्यवस्था बनाने का आग्रह किया। उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य को मानव अधिकार के रूप में मान्यता देने और मानसिक बीमारी से जुड़े कलंक को समाप्त करने की आवश्यकता पर भी बल दिया। उन्होंने समुदाय-आधारित मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा देने वाली एनएचआरसी की सलाह की सराहना करते हुए कहा कि भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्वपूर्ण है।

आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम ने कहा कि आयोग ने 1993 में अपनी स्थापना के बाद से लगभग 23 लाख 79 हजार मामलों को हैंडल किया है और 8924 मामलों में 263 करोड़ रुपये की आर्थिक राहत प्रदान की है।

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