नयी दिल्ली , दिसंबर 28 -- भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के आकलन के अनुसार जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में वर्तमान में लगभग 30 से 35 पाकिस्तानी आतंकवादी सक्रिय हैं।
पिछले कुछ महीनों में एकत्र की गयी जानकारी ये समूह ऊंची और मध्य पर्वत श्रृंखलाओं में निर्जन स्थानों पर चले गए हैं। एजेंसियों के अनुसार, ये समूह सुरक्षा बलों के साथ सीधे टकराव से बचने और खुद को छुपाये रखने के लिए अस्थायी शीतकालीन ठिकाने स्थापित कर रहे हैं।
रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि ये आतंकी समूह स्थानीय ग्रामीणों को आश्रय और भोजन की आपूर्ति के लिए मजबूर करने या धमकाने का प्रयास कर रहे हैं, हालांकि स्थानीय लोगों और 'सक्रिय कार्यकर्ताओं ' के बीच उनका समर्थन तेजी से कम हुआ है। कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में लगातार घटते स्थानीय समर्थन और सुरक्षा बलों की सतर्कता ने उन्हें पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया है। इससे उनकी फिर से संगठित होने या समन्वित हमलों की योजना बनाने की क्षमता और अधिक सीमित हो गई है।
रक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा है कि जैसे-जैसे हिमालय में हाड़ कंपा देने वाली ठंड बढ़ती जा रही है और 40 दिनों की 'चिल्लई कलां' की अवधि जम्मू-कश्मीर को अपनी चपेट में ले रही है, भारतीय सेना ने किश्तवाड़ और डोडा जिलों में अपने आतंकवाद विरोधी अभियानों को तेज कर दिया है। सेना की इकाइयों ने पाकिस्तानी आतंकवादियों का पीछा करने और उन्हें बेअसर करने के लिए ऊंचे और बर्फ से ढके क्षेत्रों में अपनी पहुंच बढ़ा दी है।
परंपरागत रूप से, 21 दिसंबर से 31 जनवरी तक चलने वाली कश्मीर की सर्दियों के सबसे कठोर चरण चिल्लई कलां की शुरुआत आतंकवादी गतिविधियों में एक अस्थायी ठहराव लाती है, क्योंकि संचार मार्ग बंद हो जाते हैं और भारी बर्फबारी पहाड़ी क्षेत्रों को अलग-थलग कर देती है। हालांकि, इस सर्दी ने भारतीय सेना और अन्य सुरक्षा बलों के दृष्टिकोण में एक निर्णायक बदलाव को चिह्नित किया है।
सूत्रों ने कहा कि सेना ने गतिविधियों को कम करने के बजाय एक सक्रिय शीतकालीन दृष्टिकोण अपनाई है, जो संभावित आतंकवादी ठिकानों पर निरंतर दबाव बनाए रखने के लिए बर्फ से ढके क्षेत्रों के भीतर निगरानी चौकियां स्थापित कर रही है।
शून्य से नीचे के तापमान और सीमित दृश्यता के बावजूद सेना के गश्ती दल नियमित रूप से ऊंचाई वाली पर्वत श्रृंखलाओं, घाटियों और जंगलों को पार कर रहे हैं ताकि आतंकवादियों को किसी भी शरणस्थली से वंचित किया जा सके।
विशेषज्ञों के अनुसार यह बदलाव आतंकवाद विरोधी रणनीति में एक विकास का प्रतीक है, जो सेना की अनुकूलन क्षमता और मौसम या इलाके की परवाह किए बिना अपने अभियानों को बनाए रखने के उसके संकल्प को रेखांकित करता है।
सूत्रों के अनुसार, भारतीय सेना नागरिक प्रशासन, जम्मू- कश्मीर पुलिस (जेकेपी), केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), विशेष अभियान समूह (एसओजी), वन रक्षकों और ग्राम रक्षा गार्ड (वीडीजी) सहित कई सुरक्षा और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को शामिल करते हुए एक समन्वित प्रयास का नेतृत्व कर रही है।
इस सर्दी में सेना और अन्य बलों का मुख्य ध्यान दोतरफा है, ज्ञात क्षेत्रों के भीतर शेष आतंकवादी ठिकानों को खत्म करना और यह सुनिश्चित करना कि आतंकवादी दुर्गम ऊंचे क्षेत्रों तक ही सीमित रहें। यह रोकथाम रणनीति न केवल आतंकवादियों को आबादी वाले क्षेत्रों में घुसपैठ करने या फिर से संगठित होने से रोकती है, बल्कि उनके रसद और संचार चैनलों को भी महत्वपूर्ण रूप से बाधित करती है।
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