नयी दिल्ली , नवंबर 28 -- वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि वैश्विक चाय व्यापार में देश की स्थिति को और मजबूत बनाने के लिए माल की उच्च गुणवत्ता के साथ चाय में अपशिष्ट की अधिकतम सीमा (एमआरएल) कम से कम रखने की आवश्यकता पर बल दिया है।
श्री गोयल ने इसके लिए चाय उत्पादन एवं प्रसंस्करण में स्वस्थ विधियों के प्रयोग, श्रम मानकों को जिम्मेदारी से अपनाने और निरंतर नवाचार करते रहने की आवश्यकता पर भी जोर दिया । वह शुक्रवार को राजधानी में सुरक्षित चाय उत्पादन पर राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। इसका आयोजन संकल्प फाउंडेशन ने किया था।
उन्होंने कहा कि भारत को दार्जिलिंग, असम और नीलगिरि जैसी प्रतिष्ठित चायों के लिए विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है, लेकिन देश के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विपणन योग्य उत्पादों की एक व्यापक सूची विकसित करना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि भारत को अपनी पारंपरिक क्षमताओं से आगे बढ़कर नए विशिष्ट मिश्रणों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो बदलते उपभोक्ता स्वाद, उभरते स्वास्थ्य रुझानों और दुनिया भर के उत्कृष्ट जीवनशैली बाज़ारों के अनुरूप हों।
उन्होंने इसी सदर्भ में कहा, 'कहा उच्च गुणवत्ता वाली चाय और निम्न एमआरएल स्तर बनाए रखने के लिए स्वस्थ विधियों, श्रम मानक को दायित्वपूर्वक अपनाने और निरंतर नवाचार जैसी बातों पर ध्यान देना आवश्यक है।'उन्होंने शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों से भारत की विविध कृषि-जलवायु क्षमताओं का लाभ उठाकर नवीन किस्में और उच्च-मूल्य वाले उत्पाद विकसित करने का आग्रह किया, जिससे निर्यात के नए अवसर खुल सकें। वाणिज्य मंत्री ने यह भी कहा कि निरंतर शोध, प्रयोग और उत्पाद विकास यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे और इसी से घरेलू चाय विश्व बजार में अपनी विशिष्टता के साथ प्रतिस्पर्धी और भविष्य के लिए हमेशा तैयार बने रह सकता है ।
भारत दुनिया के सबसे बड़े चाय उत्पादकों और निर्यातकों में से एक है। देश से चाय का निर्यात सालाना लगभग 25.5 करोड़ किलो ग्राम है।
श्री गोयल ने कहा कि चाय उद्योग के प्रोत्साहन के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में की जा रही पहल छोटे चाय उत्पादकों, श्रमिकों और संबद्ध हितधारकों को सहयोग देने पर केंद्रित हैं। उन्होंने चाय उत्पादकों और श्रमिकों को सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से सरकार के 1,000 करोड़ रुपए के पैकेज और चाय सहयोग ऐप जैसी का उल्लेख किया, जो छोटे उत्पादकों को उनकी उपज के बेहतर मूल्य प्राप्त करने में सक्षम बनाती हैं।
श्री गोयल ने नवीन और टिकाऊ कृषि पद्धतियों को व्यापक रूप से अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया और कहा कि ड्रिप सिंचाई जैसी विधियाँ उत्पादकों के लिए जल दक्षता और समग्र उत्पादकता में उल्लेखनीय सुधार ला सकती हैं।
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि चाय क्षेत्र का भविष्य खेती और प्रसंस्करण के हर चरण में पर्यावरण के प्रति ज़िम्मेदार दृष्टिकोण अपनाने पर निर्भर करता है। उन्होंने हितधारकों से जैव-निम्नीकरणीय और पर्यावरण-अनुकूल पैकेजिंग विकल्पों का पता लगाने का भी आग्रह किया और कहा कि ऐसे उपायों से उद्योग को वैश्विक बाजार की स्वस्थ विकास की अपेक्षाओं को पूरा करने में मदद मिलेगी।
श्री गोयल ने चाय फार्म की उत्पादकता बढ़ाने और बेहतर आय सुनिश्चित करने में कौशल विकास पहलों, मशीनीकरण और आधुनिक उपकरणों के महत्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने मौसम संबंधी बदलावों और कीट-संबंधी जोखिमों का पूर्वानुमान लगाने के लिए प्रौद्योगिकी-संचालित प्रणालियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया और कहा कि इस तरह के बुद्धिमत्ता-आधारित दृष्टिकोण समय पर कृषि संबंधी निर्णय लेने और उत्पादकों को चुनौतियों का अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने में मदद करने के लिए आवश्यक हैं।
श्री गोयल ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सरकार और उद्योग जगत को एक टीम के रूप में काम करना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भारतीय चाय का हर कप गुणवत्ता, विरासत और विश्वास का प्रतीक हो। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि अमृत काल के दौरान विकसित भारत 2047 की भारत की यात्रा में चाय क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा ।
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