(शोभित जायसवाल से)नयी दिल्ली , अक्टूबर 26 -- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित तकनीकें तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे कुछ इलाकों में खेती के तौर तरीके में क्रांतिकारी बदलाव ला रही हैं और अगर इनका व्यापक उपयोग किया जाए तो इससे देश के 15 करोड़ से अधिक किसानों को बड़ा लाभ मिल सकता है।
कृषि क्षेत्र में एआई के प्रयोग पर एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि एआई को बड़े पैमाने पर लागू करने से कृषि सकल घरेलू उत्पाद ( कृषि जीडीपी) में वृद्धि होने के साथ, संसाधनों का समुचित उपयोग बढ़ेगा और नुकसान कम होगा। यही नहीं, एआई स्थानीय किसानों को वैश्विक बाजार में जोड़ने में काफी मददगार हो सकता है।
'फ्यूचर फार्मिंग इन इंडिया: ए प्लेबुक फॉर स्केलिंग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इन एग्रीकल्चर', शीर्षक से रिपोर्ट हाल ही में प्रधानमंत्री के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार अजय कुमार सूद ने जारी की। इसे चौथी औद्योगिक क्रांति (सी4आईआर) भारत और विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की मदद से तैयार किया गया है।
यह रिपोर्ट भारत और दुनिया में जगह जगह लागू पायलट परियोजनाओं के परिणामों पर आधारित है।
रिपोर्ट में तेलंगाना के सागु बागु प्रोजेक्ट में एआई के इस्तेमाल के लाभ का विवरण देते हुए कहा गया है कि वहां इस परियोजना में शामिल मिर्च की खेती करने वाले 7000 किसानों की एक सीजन की पैदावार 21 प्रतिशत बढ़ गयी जबकि खेती में उर्वरकों का खर्च नौ प्रतिशत कम हो गया। इसके साथ ही किसानों अपनी फसलों के लिए 11 प्रतिशत ऊंची कीमत मिली और उन्हें प्रति एकड़ 800 डॉलर या करीब 70 हजार का अतिरिक्त मुनाफा हुआ।
इसी तरह आंध्र प्रदेश में एक परियोजना में किसानों को एआई-आधारित खेती-बाड़ी की सलाह से पैदावार 30 प्रतिशत तक बढ़ गयी। एआई आधारित कीट प्रकोप के पूर्वानुमान मॉडल से 3,000 किसानों को फसलों का नुकसान रोकने में मदद मिली। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी कई शुरुआती सफलताएं दर्शाती हैं कि एआई कम उपज, मौसम की मार और बाजार की बाधाओं से निपटने में बड़ी मदद कर सकता है, जिससे भारत के किसानों के लिए एक ज्ञान आधारित , स्वस्थ और समृद्ध भविष्य का निर्माण हो सकता है।
भारतीय कृषि में कम उपज, छोटी जोत, छोटे किसानों के लिए कर्ज की सीमित सुविधाओं और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव जैसी बाधाओं का उल्लेख करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि इनके समाधान में एआई एक परिवर्तनकारी हथियार के रूप में उभरता है।
रिपोर्ट में एआई तकनीक को कृषि में बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए सरकारों, स्टार्टअप्स और शैक्षणिक संस्थानों सहित कई हितधारकों की ओर से मिल कर हर संभव प्रयास किये जाने की सिफारिश की गयी है। रिपोर्ट में छोटे किसानों की जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यावहारिक तरीके सुझाए गये हैं।
रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक एआई बाजार 2022 में 136 अरब डॉलर का था, जो 2030 तक 13 गुना बढ़ कर 1800 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। इसमें यह भी कहा गया है कि भारतीय कृषि क्षेत्र इसका लाभ उठाने के लिए तेजी से तैयार हो रहा है और इससे कृषि में क्रांतिकारी बदलाव आ सकते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार इन शुरुआती सफलताओं से एआई की परिवर्तनकारी क्षमता का पता चलता है, लेकिन चुनौती है कि ये लाभ लाखों छोटे किसानों तक कैसे पहुंचाए जाएं। यह रिपोर्ट तीन मुख्य स्तंभों - 'इनेबल (समर्थ बनाने), क्रिएट (सृजित करने) और डिलीवर (किसानों तक पहुंचाने)' - के इर्द-गिर्द एक रोडमैप भी देती है। यह रोडमैप मजबूत डिजिटल बुनियादी ढांचे, समावेशी नीतियों और एआई को अपनाने में तेजी लाने पर बना है। इसमें कहा गया है कि 'इनेबल' स्तंभ सरकारों की भूमिका को बताता है। सरकारों को चाहिए कि वे मजबूत डिजिटल बुनियादी ढांचे, सही नीतियों से एक मुकम्मल जमीन तैयार करें। 'क्रिएट' स्तंभ स्टार्टअप्स और नये तौरतरीकों पर जोर देता है, जो अनुसंधान संस्थानों से हकीकत वाली कृषि चुनौतियों का समाधान निकालने के लिए हो। तीसरा 'डिलीवर' स्तंभ, तय करता है कि एआई समाधान किसान तक पहुंचे यानी उसे ट्रेनिंग, फीडबैक और बाजार पहुंच मिले।
रिपोर्ट में एआई की मदद से सही फसल लेने की योजना बनाने की बात कही गयी है। एआई की सहायता से मिट्टी, मौसम, कीमतों और वैश्विक व्यापार के डेटा के आधार पर खेती के लिए सही फसल का चुनाव किया जाए। दूसरी सिफारिश मिट्टी की सेहत की उचित जानकारी के आधार पर खाद, उर्वरक के सही इस्तेमाल, और एक अन्य अनुशंसा कीट प्रकोप के पूर्वानुमान पर आधारित दवाई का प्रबंध और चौथी सिफारिश स्मार्ट मार्केटप्लेस के बारे में है जिसमें बाजार आदि सूचनाओं के आधार पर फसलों के उचित दाम दिलाने की व्यवस्थाएं शामिल हैं।
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