दरभंगा , दिसंबर 23 -- दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली के उर्दू विभाग के अध्यक्ष और प्रख्यात उर्दू आलोचक एवं शोधकर्ता प्रोफेसर अबू बकर अबाद ने मंगलवार को कहा कि किसी भी भाषा को समृद्ध बनाने के लिए क्षेत्रीय भाषाओं के अनुवाद की बहुत आवश्यकता है, क्योंकि क्षेत्रीय भाषा केवल एक भाषा ही नहीं बल्कि उस विशेष क्षेत्र की संस्कृति और सभ्यता का दर्पण भी होती है।
प्रोफेसर अबाद ने आज यहां सी. एम. कॉलेज में उर्दू विभाग द्वारा क्षेत्रीय भाषाओं के महत्व और प्रासंगिकता पर आयोजित परिचर्चा में कहा कि जब हम क्षेत्रीय भाषाओं के अनुवादों से रूबरू होते हैं, तो हमें विभिन्न संस्कृतियों और सभ्यताओं के बारे में भी जानकारी मिलती है। उन्होंने कहा कि बिहार में कई क्षेत्रीय भाषाएँ हैं जिनमें साहित्य लेखन की प्राचीन परंपरा है, इसलिए यहां की विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य का उर्दू में और उर्दू साहित्य का क्षेत्रीय भाषा में अनुवाद करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
प्रोफेसर अबाद ने कहा कि प्रोफेसर मुश्ताक अहमद का यह प्रयास सराहनीय है कि वे मिथिलांचल की क्षेत्रीय भाषा मैथिली के लेखकों और कवियों की रचनाओं का उर्दू में और उर्दू साहित्य का मैथिली में अनुवाद करते रहते हैं। उन्होंने डिप्टी नज़ीर अहमद के उपन्यास "मरातुल अरूस का मैथिली में", "कन्यक आईना" और "बाबा नागार्जुन के मैथिली उपन्यास बालचनमा" का उर्दू में अनुवाद किया है, जो उर्दू भाषा और साहित्य के लिए वास्तव में उपयोगी है।
परिचर्चा की अध्यक्षता कर रहे हैं सी.एम. कॉलेज, दरभंगा के प्रधानाचार्य प्रोफेसर मुश्ताक अहमद ने कहा कि हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति मे क्षेत्रीय भाषाओं के संवर्धन का समर्थन किया है और इसमें प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक के अवसर प्रदान किए गए हैं, जो निस्संदेह भारत जैसे बहुभाषी देश के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकते हैं।
प्रोफेसर अहमद ने कहा कि मिथिला में मैथिली भाषा का साहित्यिक दृष्टि से भी बहुत महत्व है, क्योंकि 14वीं शताब्दी में विद्यापति जैसे महान कवि का जन्म यहीं हुआ था, जिन्होंने मैथिली कविता को जन्म दिया और मैथिली में अनुकरणीय रचनाएँ लिखीं। मैथिली भाषा के साहित्य का उर्दू में अनुवाद और उर्दू साहित्य के प्रतिनिधि कवियों और गद्य लेखकों की रचनाओं का मैथिली में अनुवाद दोनों भाषाओं के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकता है।
परिचर्चा में सीएम कॉलेज के उर्दू विभागाध्यक्ष डॉ. खालिद अनजुम उस्मानी, डॉ. फैजान हैदर, डॉ. शबनम, डॉ. मुजाहिद इस्लाम, डॉ. मसरूर हैदरी और ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर आफताब अशरफ, प्रसिद्ध पत्रकार जफर अनवर शकरपुरी, प्रोफेसर शाहनवाज आलम, डॉ. रिजवान अहमद और अन्य लोगों ने भी इस अपने विचार व्यक्त किए और क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य के अनुवाद को समय की आवश्यकता बताया।
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