भुवनेश्वर , अक्टूबर 20 -- विशेषज्ञों का मानना है कि ओडिशा में कोटपाड़ के बुनकरों की हाथ से कपडा़ बुनने की सदियों पुरानी पारंपरिक कला को अभी तक वह वैश्विक पहचान नहीं मिल सकी है जिसकी वह हकदार है।

ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूओ), कोरापुट और भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) संबलपुर द्वारा संयुक्त रूप आयोजित दो दिवसीय मास्टर बुनकर प्रबंधन प्रशिक्षण कार्यक्रम (2025) में इस बात पर विचार व्यक्त किया गया कि इस कला को आगे बढ़ाने के लिये डिजिटल ब्रांडिंग और नवाचारी तरीके अपनाने की जरूरत है।

सीयूओ के कुलपति प्रोफेसर नरसिंह चरण पांडा ने कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुये कहा कि इस तरह के सहयोग शैक्षणिक ज्ञान और सामाजिक प्रभाव के बीच के अंतर को कम करते हैं।

उन्होंने आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने, उचित मूल्य सुनिश्चित करने, वैश्विक बाजार तक पहुँच बढ़ाने और बेहतर प्रबंधन विधियों के माध्यम से बुनकरों की आय में सुधार पर ज़ोर दिया।

उन्होंने कहा, "विश्वविद्यालयों को शैक्षणिक सीमाओं से आगे बढ़कर सामाजिक उत्थान में योगदान देना चाहिए।"आईआईएम संबलपुर के निदेशक प्रो. महादेव जायसवाल ने कोटपाड़ के बुनकरों को सशक्त बनाने के लिए निरंतर कौशल और प्रबंधन प्रशिक्षण के साथ-साथ वैश्विक पहुँच के लिए ओएनडीसी और अमेज़न जैसे डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का लाभ उठाने के महत्व पर ज़ोर दिया।

सीयूओ के रजिस्ट्रार डॉ. राकेश कुमार लेंका ने स्थानीय बुनकरों को सशक्त बनाने के लिए विश्वविद्यालय की सामाजिक ज़िम्मेदारी के तहत प्रतिबद्धता की सराहना करते हुये कहा कि प्रशिक्षण से उनकी उद्यमशीलता कौशल में वृद्धि होगी और उत्पाद की स्थिति में सुधार होगा।

कार्यक्रम समन्वयक डॉ. प्रशांत कुमार बेहरा (सीयूओ) ने भारत की सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करने वाली पारंपरिक, टिकाऊ बुनाई तकनीकों के संरक्षण के लिए कोटपाड़ के बुनकरों की सराहना की, जबकि सह-समन्वयक डॉ. सुजीत कुमार प्रुसेठ (आईआईएम संबलपुर) ने इस आयोजन को शिक्षा जगत और समाज के बीच एक आदर्श सहयोग बताया।

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