जालंधर , अक्टूबर 17 -- केंद्र सरकार ने राज्यों को बिजली क्षेत्र के निजीकरण के लिए तीन विकल्प दिए हैं। अन्यथा वह केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन न करने वाले राज्यों को अनुदान बंद कर देगी।
पहले दो विकल्पों में, राज्य को निजी क्षेत्र को पूर्ण प्रबंधन नियंत्रण के साथ 26 से 51 प्रतिशत हिस्सेदारी देनी होगी। तीसरे विकल्प में, राज्य को डिस्कॉम को स्टॉक एक्सचेंज में पंजीकृत कराना होगा।
ऑल इंडिया इंजीनियर एसोसिएशन के प्रवक्ता वी के गुप्ता ने शुक्रवार को बताया कि सात राज्यों के मंत्रियों के समूह की हालिया बैठक के बाद, केंद्र सरकार राज्यों को बिजली के निजीकरण के लिए तीन विकल्प दे रही है; अन्यथा, उन राज्यों को केंद्रीय अनुदान बंद कर दिया जाएगा।
श्री गुप्ता ने बताया कि पहले विकल्प में, राज्य सरकार बिजली वितरण निगमों में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचकर पीपीपी (सार्वजनिक-निजी भागीदारी) मॉडल के तहत बिजली वितरण कंपनियों का संचालन करेगी। दूसरे विकल्प में, राज्य को बिजली वितरण कंपनियों में 26 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचकर प्रबंधन किसी निजी कंपनी को सौंपना होगा। तीसरे विकल्प में, जो राज्य निजीकरण नहीं चाहते, उन्हें अपनी बिजली वितरण कंपनियों को सेबी और स्टॉक एक्सचेंज में पंजीकृत कराना होगा। मंत्रिसमूह की बैठक में यह भी बताया गया कि इन तीनों विकल्पों में से कोई भी विकल्प न चुनने वाले राज्यों को केंद्र से मिलने वाला अनुदान रोक दिया जाएगा और आगे कोई वित्तीय सहायता भी नहीं दी जाएगी।
उल्लेखनीय है कि संविधान की आठवीं अनुसूची में बिजली समवर्ती सूची में है जिसका अर्थ है कि बिजली के मामलों में केंद्र और राज्य सरकारों को समान अधिकार प्राप्त हैं। ऐसे में, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु सहित सात चुनिंदा राज्यों की राय के आधार पर निजीकरण का फैसला राज्य सरकारों पर कैसे थोपा जा सकता है? ऐसा प्रतीत होता है कि निजीकरण के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान को आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है।
हैरानी की बात यह है कि अखिल भारतीय डिस्कॉम एसोसिएशन (एआईडीए) मंत्रिसमूह की सभी बैठकों में एक आमंत्रित सदस्य होता है। ऐसा लगता है कि एआईडीए बिजली वितरण क्षेत्र के निजीकरण में बिचौलियों की भूमिका निभा रहा है।
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