टिहरी गढ़वाल , अक्टूबर 27 -- उत्तराखंड में वीरचंद्र सिंह गढ़वाली औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, भरसार के वानिकी महाविद्यालय रानीचौरी में देश में कृषि-पारिस्थितिकी-पर्यटनः अवसर, चुनौतियाँ और आगे की राह विषय पर दो दिवसीय चिंतन शिविर का उद्घाटन राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह ने दीप प्रज्वलित कर कहा कि कृषि, पर्यावरण और पर्यटन का संगम आत्मनिर्भर भारत की नई राह है।

राज्यपाल ने अपने उद्घाटन संबोधन में कहा कि यह आयोजन केवल एक अकादमिक चर्चा नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा तय करने वाला प्रयास है, जो अपनी जड़ों में कृषि, आत्मा में पर्यावरण और हृदय में पर्यटन की संस्कृति को संजोए हुए है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड में पर्यटन अब केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि सतत विकास का साधन बन चुका है। इको-टूरिज्म और कृषि-पर्यटन जैसी पहलें न केवल प्रकृति एवं संस्कृति की रक्षा सुनिश्चित करती हैं, बल्कि किसानों और स्थानीय समुदायों को आत्मनिर्भरता व गरिमामय आजीविका का अवसर भी प्रदान करती हैं।

उन्होंने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था की जड़ें कृषि में हैं, जो केवल आजीविका नहीं बल्कि जीवन का दर्शन है। कृषि हमारे ग्रामीण समाज की आत्मा है और पर्यावरण उसकी सांस - दोनों का संगम ही एग्री-इको-टूरिज्म का सार है। यही नहीं भारत के पास अपार संभावनाएँ हैं, किंतु इको-टूरिज्म का विकास अभी प्रारंभिक अवस्था में है। ग्रामीण पर्यटन की राष्ट्रीय नीति इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। कृषि-पर्यटन मॉडल किसानों की आय बढ़ाने, ग्रामीण रोजगार सृजित करने और अर्थव्यवस्था सशक्त बनाने की क्षमता रखता है।

इस अवसर पर राज्यपाल ने वीर चंद्र सिंह गढ़वाली विश्वविद्यालय को बधाई दी और कहा कि यह संस्थान इको-टूरिज्म एवं कौशल-विकास पाठ्यक्रमों के माध्यम से नवाचार और उद्यमिता को प्रोत्साहित कर रहा है। उन्होंने आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय, अयोध्या और डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा द्वारा प्रारंभ किए गए एग्री-टूरिज्म प्रबंधन डिप्लोमा को भी प्रेरणादायक बताया। उन्होंने भरसार, गैरसैंण, पौड़ी, प्रतापनगर और मैलचौरी महाविद्यालय की 2722.64 लाख रुपये की विभिन्न योजनाओं का शिलान्यास किया।

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